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________________ चित्र परिचय आपका जन्म जोधपुर राज्य के अंतर्गत फलोदी नगर में सम्वत् १९२६ में हुआ। आपके पिताजी सेठ हंसराजजी ने जबलपुर में करीब १२५ वर्ष पूर्व आकर व्यवसाय की नींव डाली। आज भी सेठ हंसराज बखतावरचंद व सेठ प्रतापचंद धनराज के नाम से फर्म प्रसिद्ध है। सेठ धनराजजी आपके लघुभ्राता थे । आपके श्रीसम्पतलालजी और श्रीमूलचन्दजी, ये दो पुत्र हैं। श्रीसम्पतलालजी ज्येष्ठ पुत्र हैं, जिन्होंने एक कुशल व्यापारी के नाते कटनी में पर्याप्त उन्नति की और यह उन्हीं की व्यवसाय कुशलता है कि 'सम्पतलाल मलचंद' फर्म कटनी की प्रसिद्ध फर्मों में है। सेठ धनराजजी के दो पुत्र सेठ श्रीरतनचंदजी और श्रीलालचंदजी हैं। बन्धु युगल वक्ता और समाज सेवी है। सदर के सार्वजनिक जीवन में और धार्मिक कार्यों में इनका योग सदैव एकसा रहता है। इस तरह दोनों भ्राताओं का अच्छा बड़ा कुटुम्ब है सबमें पारस्परिक सद्भावना पूर्ण प्रेमभाव अनुकरणीय है। आप में धर्मानुराग तथा वात्सल्य तो कूट फूटकर भरा हुआ था। श्रीसम्पन्न और इतने प्रतिष्ठित होने पर भी आपका जीवन सादगी से भरा था। असहाय लोगों को आप गुप्त रूप से दान देते रहते थे। मारवाड़ व इधर की धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं में दान की संख्या आपकी ही ऊंची रहती थी। श्रीजिनेन्द्र का पूजन, साधुभक्ति व स्वधर्मी जनों की सेवामें ही आपका जीवन बीता। आपने सहकुटुम्ब सब जैन तीर्थों की यात्रा की थी। जिस समय आपने अट्राई का व्रत किया, उस समय आप.सदर बाजार में जैन मंदिरजी के न होने से, शहर में जो सदर से २ मील दूर पड़ता है, दर्शन करने के लिये वहाँ जाया करते थे। उसी समय आपके दिल में यह भाव 'अंकुरित हुआ कि सदर में भी जिन मंदिरजी का होना आवश्यक है ! श्रापको श्रीगुरुदेव जिनदत्तसूरिजी महाराज पर अटल श्रद्धा थी। आपने उन्हीं का ध्यान किया और इस कार्य में सफल होने की प्रार्थना की। श्रीगुरुदेव का आशीर्वाद उन्हें मिला और सेठसाहब ने उसी समय आगे होकर इस कार्य का सूत्रपात कर दिया। अन्य जैन बन्धुओं की सहायता से सदर में शीघ्र ही "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009681
Book TitleJain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year1950
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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