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________________ [ढाल ७ -- जलालियानो वाल] जिम २ जिन मुख देखिये रे, तिम तिम आनन्द थाय । म्हारा (जनजी पाप पुलाये पाबला रे, जन्म तणा मुख जाय ॥ म्हा० प्र०७ [ ढाल ८ -- वीर यखाणी राणी चेलणा ए चाल ] जिन प्रतिमा जिन खारखी जो, ए कह्यो मुक्ति उपाय । नयखें मूरत निरखताजी, समकित निर्मल थाय ॥ प्र०७ [ढाल १ – कर्म परीक्षा करण कुवर चल्यो ए चाल ] थाः कुमार तणी परें जी, सज्यं नव गणधार । प्रतिमा प्रतिबुध्या थकी रे, पाम्या नवनो पार ॥ प्र० ॥ [दाल १० --- वरणाली वामुडा रण व एहनो ए चाल ] नाजिराय कुल सिर तिलौ, मरूदेवी मात महागे रे । लंबन घृषन सोहामणौ युगवा धर्म निवारोरे ॥ प्र० १० - [ढाल ११ --- कर जोड़ी आगल रही नी चाल ] आज सफल दिन माग, नेट्या श्री जंगवंतरे । पाप सहु पराजव गया, हिवड़ो अति हरखंतो रे ॥ प्र० ११ ढाल १२ -- राग धन्याश्री ] श्ण परि बिनब्यो जैसलमेर मकार । गणदर वसही मुख मंडण जिन सुख कार ॥ संवत सोलहसै एक असी (१६०१ ) नन्न मास । कहै समय सुन्दर कर जोड़ी ए अरदास ॥ प्र० १२ इति उ० श्री समयसुन्दर जी कृत श्री आदोश्वर स्तवन * सम्पूर्ण । * यह स्तवन परिशिष्ट छपते समय मुझे बोकानेर निवासी श्रीमान भंवरलालजी नाहटा की कृपासे मिला है। यदि जैसलमेर जानेके पहिले यह सव स्तवन मुझे प्राप्त हुए होते तो लेखों के संग्रह में विशेष सहायता मिलती। "आनन्द काव्य महोदधि भाग ७ के पृ० २४ में कविवर के सं० १६८१ में जैसलमेर के निवास का उल्लेख है। उसी समय आपने यह सब स्तवनों की रचना की थी। "Aho Shrut.Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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