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________________ ( ३१ ) करने की चेष्टा में लगे थे । ये लोग जिस समय राजस्थान में राजपूत राजाओं के साथ मैत्री स्थापन और उन लोगों के errerita darस्य हटाने का प्रयत्न कर रहे थे उस समय सेठ बहादुरमलजी और जोरावरमलजी का बीकानेर, मारवाड़, जैसलमेर आदि स्टेटों में विशेष प्रभाव था और उस समय वृटिश सरकार को भी इन लोगोंने अच्छो सहायता पहुंचाई थी । ये विवरण सरकारी कागजात और अंगरेज अफसरों के पुस्तकों से प्रमाणितहै । हर्ष का विषय है कि आज भी इनके वंशज कोटा निवासी सेठ केशरीसिंहजी 'दीवान यहादुर' की उपाधि से विभूषित हैं । उदयपुर निवासी राय बहादुर सेठ सिरेमलजी बाफणा स्वनाम विख्यात हैं । आप आज इंदौर स्टेट के प्रधान मंत्री का पद सुशोभित कर रहे हैं । सरकार की ओर से राय बहादुर आदि पदवी प्राप्त करने के अतिरिक्त स्वयं उच्च शिक्षित हैं और आपने विश्वविद्यालय के एम० ए० की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था। आप दो बार यूरोप की यात्रा भी कर आये है । लेखों से और खोज करने पर इन लोगों के वंशजों की वर्तमान समय तक की नामावली स प्रकार मिलो है : सेठ देवराजजी + ( १ ) के पुत्र गुमानचन्दजो + ( १,२,३ ) थे । इनकी भार्या का नाम जैता + ( १२ ) था। इनके ५ पुत्र और २ कन्यायें थीं । ये लोग ही जैसलमेर से राजपूताना के और २ सहरों में जाकर बसे थे । इनके पुत्र, कन्या, पौत्रादि के नाम इस प्रकार मिले है । इनकी भार्या का नाम चतुरा + ( १ ) था । इनके पुत्र दानमलजी + नहीं रहने के कारण रतलाम से भभूतसिंहजो के श्य पुत्र हमीरमलजी राजमलजी के पुत्र दीवान वहादुर केशरीसिंहजी हैं और इनके पुत्र [१] चहादुरमलजी + ( १२ ) । ( १,२ ) थे । दानमलजो के भो कोई पुत्र गोद आये थे । इनके पुत्र राजमलजो थे ! राजकुमार सिंहजो हैं । [ २ ]. सवाईर मजी + ( १,२,३ ) 1 इनकी भार्या का नाम जीवां + ( १ ) था । इनके सामसिंहजी और माणकचन्दजी + ( १ ) दो पुत्र थे और सिरदारी, सिणगारी और नानूडी + (१) ये तीन कन्यायें थीं । साम सिंहजी के पुत्र रतनलालजो + ( १ ) थे । रतनलालजी के पन्नालालजी और सूरजमलजी ये दो पुत्र थे । इन लोगों के पुत्र कोई न था । अखयसिंहजी को गोद लिया गया और इनके विजयसिंहजी गोद् आये हैं । [३] मगनोरामजी । ( १२ ) । इनकी भार्या परतापां + ( १ ) थीं । इनके एक पुत्र भभूतसिंहजी + ( १ ) और दो कन्यायें हरकँवर और हसतू + ( १ ) थीं । भभूतसिंहजी के पूनमचन्दजी, दीपचन्दजी + (१) और See Boileau's Personal Narrative, London,1823. pp. 3, 44, 85, 133, &c. + अमरसागर और सहर के घर देरासर वगैरह के जिन लेखों में इन लोगों का उल्लेख मिला है उन लेखों के नंबर इस प्रकार चिन्हित है :- ( १ ) लेख नं० २५३० (२) लेख नं० २५२४ (३) लेख नं० २५३१ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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