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________________ ( २३ ) जीवता रहे जिण मैं म्हाने किसो लाभ ? जो तीन पुत्र मांहिसु १ ने राज दौ २ दोय पुत्र म्हारा धावक हुई तो म्हेरिख्या करां, तिवारे कुलधर ने राज्य दोयो श्रोघर नै १ राजभर ने २ * श्रीजिनेश्वर सूरि वासक्षेप को श्रावक कला तिवारे श्रीधर १ ने राजघर १ नं १ श्रीपार्श्वनाथजीरा देहरा कराया श्रीजिनेश्वरसूरिजी गणो द्रव्य खरवायौ प्रतिष्ठा करो भंडार साल मां araar aat इण वास्तै भंडासाली गोत्र हुत्र, तिवारे पछे श्रीधर ५ पांच पुत्र हुवा पोलो १ भोमसी २ जगली ३ रुपसो ४ देवसो ५ तिणमें श्रीमतो पोढ़ी चाली वाकोरांरी पीड़ी आगे न वाली इण वास्ते पामसा पुत्र कुलचन्द ३, तपुत्र देव ४. तत्पुत्र धनपाल ५ तत्पुत्र साधारण ६. तत्पुत्र पुन्यपाल ७, तत्पुत्र सजू ८, तत्पुत्र देदु ६, तत्पुत्र गजमाल १० तत्पुत्र जयतौ ११ तत्पुत्र घेतसी १२, तत्पुत्र वस्तौ १३, तत्पुत्र पुजौ १४, तत्पुत्र आसकरण १५, तत्पुत्र यशोधवल १६, तत्पुत्र पुन्यसी * १७, तत्पुत्र श्रीमल्ल १८, तत्पुत्र थाहरू $ १६, तिवारे थाहरू लोद्रवेजोरा देहला पज्या देवने जीर्णोद्वार करायो श्रीविन्तामणि पार्श्वनाथजीरो मूरति युगल देह थापी, श्रीजिनराजसूरिजी प्रतिष्ठा करो, घणा पुस्तक लिवाया, श्रीसिद्धाचलजी संघ कढायो, इण भांत धर्मt aut उन्नति करी, थाहरूसा पुत्र २ मेघराज + १ हरराज + २ पुत्र मूलबन्द, तत्पुत्र लालचन्द, तत्पुत्र हरकिशन, तत्पुत्र जेठमल १ लघुपुत्र जसरूप २ जेडमल पुत्र २ गोडोदास १ जीवराज २ गोडोदास पुत्र ऋ इति थिरुसाह वंशावलो । उपरोक्त विवरण से ज्ञात होता है कि सगर राजा के पश्चात् १८ थाहरू साहजी को ६ पोढो बाद ऋभदासजी हुए, और इनके समय में में भणशालो वंशवाले अभीतक सम्मान की दृष्टि से देखे जाते 1 पीढो बाद सेठ धाहरुसाहज हुए थे और यह वंशावली लिखो गई होगी | मारवाड़ 'महाजन वंश मुक्तावली' और 'जैन सम्प्रदाय शिक्षा' के कर्त्ता लिखते हैं कि भणशाल गोवाले जैसलमेर में 'कच्छवाहे' कहलाने लगे परन्तु इसका कुछ कारण नहीं लिखा है । खोज करने पर मालूम हुआ कि सेठ थाहरूशाह के वंशवालों को जैसलमेर दरवार से ही यह उपाधी प्राप्त हुई थी। कुछ समय के पूर्व यहां कलकत्ते में जैसलमेर के सुलतान कन्दजी काछवा थे और उनको बुद्धिमत्ता कि प्रशंसा अभीतक सुनने में आती है। राजपूताना के बड़े २ समस्त स्थानों में ओसवालों कि चस्तो है और वहां प्रायः समस्त सहरों में भणशाली वंशवालों के घर पाये जाते हैं । * लेख नं० २५४३ + लेख ० २५४३-४४, २५७२ । इनकी भार्या का नाम चापलदे था । क लेख नं० २५४३ – ४४, २५६६-०३ । इनकी दो भार्यायें थों जिनका नाम कनकादे और सोहाग था । + लेख नं० २५४३ - ४४, २५७१-७२ । यह वंशावली में इनके बाद के वंशजों का वर्णन नहीं है परन्तु लेख नं० २५७१ से ज्ञात होता है कि इनके भोजराज और सुखमल नामक दो पुत्र ये + लेख नं० २५४३ - ४४, २५६८-६६, २५७२/ L "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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