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________________ . प्रथम अवस्था में सेठ थाहरुसाह सामान्य स्थिति में थे। पश्चात् उनके लक्ष्मोत्र होने को कथा स्वगाव यति भोपालजी कृत 'जैन संप्रदाय शिक्षा' नामक पुस्तक के पृ० ६३० में इस प्रकार लिखो हुई है : भण्डशालो गोत्र में थिरुसाह नामक एक बड़ा भाग्यशाली पुरुष हो गया है. इसके विषय में यह बात प्रसिद्ध है कि- यह घी का रोजगार करता था, किसी समय इसने रूपासिया गांव की रहनेवाट धो बेचने के लिये आई हुई एक स्त्री से चित्रायेल की एंडुरी (दोणी ) किसो चतुराई से ले लो था । यह स्त्रो जाति को जातिको थो और यह घो बचने के लिये रुपासियां गांध से लोद्रयापुर पट्टन को चली थी. इसने रास्ते में जंगल में से एक हरो लता (येल) को उखाड़ कर उसकी एंडुरी बनाई थी और उस पर घो को हांडो रखकर यह थिरुसाह को दूकान पर आई, थिस्साह ने इसका घी खरीद किया और हांड़ी में से धो निकालने लगा, जब घो निकालने २ घहुत देर हो गई और उस हांड़ी में से घी निकलता हो गया तब थिस्साह को सन्देह हुआ और उसने विचारा कि इस हांडी से इतना घी कैसे निकलता जाता है, जब उसने एंडरी पर से हांडो को उठा कर देखा तो उसमें घो नहीं दोखा, पत वह समझ गया कि यह एंडुरी का ही प्रभाव है, यह समझ कर उसने मनमें विचार कि इस एंडुरी को किसी प्रकार लेना चाहिये, यह विचार कर थिरुसाह ने कौड़ियां लगी हुई एक सुन्दर एंडरों उस जाटिनी को दो और उस वित्रायेल की एंडुरी को उठाकर अपनो दूकान में रख लिया। उसो एंडुरो के प्रभाव से थिरूसाह के पास बहुत सा द्रव्य हो गया था । घोकामेर निवासी 3. रामलालजी गणि कृत 'महाजन वंश मुक्तावली' में भी इसी प्रकार का वर्णन है । उक्त यति श्रीपालजी तथा आप लिखते हैं कि सेट थाहरूसाह ने आगरे में बड़ा मंदिर बनवाया था और अभी वर्तमान है। परन्तु मुझे वहां उनका बनवाया हुआ कोई मंदिर का पता नहीं मिला । जैसलमेर से इनका आगरे जाने का और यहां कोई मंदिर प्रतिष्ठा कराने का हाल कहीं मेरे देखने में नहीं आया । इस भणशाली गोत्र की उत्पत्ति के विषय में मुझे बोकानेर निवासी उपाध्याय ५० जयचन्द्रजी गण महोदय के पास की प्राचीन संग्रह में निम्नलिखित विवरण मिले हैं वह इस प्रकार है । इस में सेठ थाहरूसाहजी के पुत्र पौत्रादिकों के कई पोढ़ियों तक के नाम मिलेंगे ! ___ संवत् १११ श्रीलोद्रवपुर पट्टण माहै यादव कुल भाट्टो गोत्र श्रीसागर * नांमै रावल राज कर तेहने श्रीमती नामै राणी है तेहनै ११ पुत्र हुवा मृगोरे उपद्रव सुं८ मरण पाम्या । तिण अवसर श्री खरतरगच्छ माहे श्रीवर्द्धमान सूरि आचार्य शिष्य श्री जिनेश्वर सूरि विहार करता श्रोलोद्रपुर आया है तिवारै सागर रावल श्रीमतो राणो प्रमुख वांदणने आया बंदना कर हाथ जोड़ राजा बोनती को स्वामो माहरे ८ पुत्र मृगोरा उपद्रव सु मरण पांच्या हिवं पुत्र है सो कृपा कर जीवता रहै तिम करौ तिवार। श्रीजिनेश्वरसूरि बोल्या, सुण राजा थारा पुत्र * लेख २० २५४३ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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