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________________ ४३ शालिवाहन-रीशालजी के कोई पुत्र नहीं रहने के कारण ये केवल चार वर्ष को अवस्था में दत्तक रूप से लिये गये और सं० १९५८ में पूर्ण अधिकार प्राप्त करके अपना नाम साम सिंह से शालिवाहन प्रसिद्ध किये थे । राज्यकाल सं० १९४८-१६७१ ( ई. १८६, १६१४) । ४४ जवाहिर सिंह-शालिवाहन के कोई पुत्र नहीं रहने से वृटिश. सरकार की ओर से आप राज्याधिकारी मनोनीत होकर सं० १९७१ ( ई० १९१४ ) में गद्दों पर बंडे और वर्तमान राज्याधीश है। उपरोक्त जैसलमेर नरेशों की नामावली और संक्षिप्त विवरण से भली भांति ज्ञात हुआ होगा कि अयाधि इस रेासत का इतिहास अपूर्ण है। ऐतिहासिक दृष्टि से इन जेन लेवों को उपयोगिता भी पाठक अच्छी तरह उपलब्ध किये होंगे | मैं पहले हो कह चुका हूँ कि मेरे संग्रहीत लेखों के अतिरिक्त वहां सैकड़ों लेख वर्तमान हैं। आशा है कि वे सब प्रकाशित होने से वहां के इतिहास में और भी प्रकाश पड़ेंगे। वर्तमान जैसलमेर नरेश महाराजाधिराज महाराघल सर जवाहिर सिंह जी साहेब बहादुर के० सी० एस. आई. का जन्म सं० १९३६ गोपाष्टमी के दिन हुआ था । बाल्यावस्था में आप ने मेयो कालेज, अजमेर में अध्ययन किया था । पश्चात् देहरादून के काडेट कोर में कईएक वर्ष तक रहकर वहां को शिक्षा प्राप्त की थी । सं० १९७१ में गद्दी पर बैठने के बाद हो वृटिश गवर्णमेट ने आपको सर्व प्रकार से योग्य समझ कर राज्य का पूर्ण अधिकार दिया है और अद्यावधि आप प्रशंसनीय राज्यशासन कर रहे हैं, आप का साहित्य, शिल्प में भी अच्छा प्रेम है। मुझे भी आप के दर्शनों का और दरबार में उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था तथा आप मुझे इस कार्य में प्रोत्साहित किये थे। ऐसे प्रजाप्रिय धार्मिक दयालु राजाओं की संख्या अधिक देखने में नहीं आती है। आप के दो पुत्र है। प्रथम महाराज कुमार युवराज गिरधरसिंहजो साहेब, दूसरे महाराज कुमार हुकुमसिंहजी साहेब। स्टेट के दीवान साहेब भी अच्छे विधान है। इन से भी मिल कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई थी। स्टेट इंजिनियर बाबू नेपालचन्द्रजी इत्त भी बड़े सुयोग्य अफसर है। आपने हाल में ही “सरस्वनी” ( मई. १९२८ ) नामक सुप्रसिद्ध पत्रिका में 'स्थापत्य शिल्प' शोषक, और “मडान रिवीऽ” प्रसिद्ध अंगरेजी पत्रिका ( फरसे. १९२६ ) में जैसलमेर और यहां की प्राचीन और नई इमारतों के विषय में विद्वनापूर्ण चित्रमय प्रचंध प्रकाशित किये हैं। यहां लिखते हर्ष होता है कि जैसलमेर आदि स्थानों के विश्व संग्रह करने के विषय में आपने मुझे बड़े ही प्रेम के साथ सहायता की है और इस के लिये मैं आप का कृतज्ञ हूं ।। लिखना बाहुल्य है कि जैसलमेर में प्राचीन काल से श्वेताम्बर जैनियों का और खास करके ओसवाल श्रीमतों का विशेष प्रभाव विद्यमान था। उन लोगों के धर्मगुरु जैनाचार्यों का भी वह केन्द्रस्थान था। इस नगरी में खरतरगच्छ के विद्वान् और प्रभावशाली जैन साधु मंडलो तथा आचार्य्यगणों का बराबर समावेश होता था। इन लोगों के सदुपदेश से हो वहाँ बड़े २ मंदिर बने थे और भव्य मूर्तियों की समय २ पर पहु संख्या में प्रतिष्ठा हुई भी। विधम्मी लोगों के अत्याचार से बचाने के लिये मंदिरों के साथ ही भंडारों में प्राचीन ताइपमादि के अमूल्य जैन अन्य सुरक्षित किये गये थे । "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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