SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १५२ ] ( 9 ) पचंदजी तत्पुत्र हिमतरामजी जेठमलजी नथमलजी सागरमलजी उमेदमलजी तत्परिवार मुलचंद सगतमल केसरीमल रुषजदास सांगीदास जगवानदास जीषचंद चिंतामणदास लुकिरण मना ( ८ ) खाल कनैयालाल सपरिवारयुतैः आत्मपरकल्याणार्थं श्री सम्यक्त्वोद्दीपनार्थ च श्री जेसलमेरुनगर सत्का अमरसागर समीपवर्त्तना समीचिना आरामस्थांने श्री. रुषजदेव जिन ( ७ ) मन्दिर नविनं करापितं तत्र श्री आदिनाथबिंब प्राचिन वृहत्खरतरगणनाथेन प्रतिष्ठितं तत् श्रीमनिमहेंद्रसूरिपद पंकज सेविता वृत्खरतरगयाधिश्वरेण चतुर्विधसंघसहितेन (१०) श्री जनमुक्तिसूरिया विधिपूर्व महता महोत्सवेन शोजनलने श्रीमूलनायक न स्थापितं पुनर्धनेक विधानामंजन सिलाका विहिता पुनर्युतिय भूमि प्रासादे स्वप्रतिष्ठितं ( ११ ) श्री पार्श्वनाथवित्र मुलनायकस्वेन स्थापितं पुनर्विशवहिरमांण प्रतिष्ठा कृतं मंदिर के पास बाजू जीमणे श्रीदादासाहेब को मंदिर हो जिए मां श्री जिनकुशलसूरिजी ( १२ ) महाराज की मुर्ति विच मांदे विराजमान तथा श्रीजिनदत्तसूरिचरणगडुका तथा श्री जिनकुशल सूरिचरगडुका तथा श्रीजिनदर्षसूरिचरणपादुका तथा जिनम "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy