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________________ "Aho Shrut Gyanam" अमरसागर बाफणा हिम्मतरामजी का मंदिर प्रशस्ति (नं० २५३१ ) 11711 ॥ श्रीपारस जिनम्॥ जयराम मनोनयन कृतिपर प्रतिदिन तान्येश्री जिनराज जिन भती या स्फुरनिनाति सोनी सर्व सहकिरन रेसाहरं नानिच मी क्रीशन नीनगरात पर दानमा छन दरदास मारा करता मन परिसरकारी सचिन रामदेव जन मन्दिर बेनक्रापितं श्रनिमिनट खरतरंगनाथन प्रतिष्ठित निमपदक जतेदिता र खरतर गला धिश्वरे एचदुर्विधसंघ सरिन दिवानादप्रतिि मिश्री दादासाहेब को माना मंदा काम जल्द सूचिर पाड़ का नया जिनम गरेका मुरवस्था निर्व‌ात सवा मी घरी नाम से नाग बदली मांजी रेखा मा श्री उ भरदार मलन था की भांजीवर सादरा जी से. या लोकश्रीर राजधर्मदीक्षा दिली जाई दरबार साहिब परीने सोनी श्रीसंघ समेत शाखा श्री जी महाराजंका वाजिपी थी को माल सबावनथार करने की भागवा में तीन तहगी एपसवाला उस जाय बरु सानो पीना उपजी साहेबतपे‌लेर प्रमुख सादिरूपी या दूसरो काधीन प्रत्येके प्रत्येक दाना तथा रंग के तीयों को सत्कार यानी तेरे कीनेो श्री सिर कराव की नो घोड़ा सिरानी निरोकी नोवा सर्वने सिरपास का जिसे रुपया दिनांकीत जावदना जिन इस रिसावायाच जी गल्तिन शिष्यास श्री शान देखीन सरकारी राम मंदिरी ऐजाजी परिवार सैनिकी कंदी माजी नंदीनी नवगेरे साराबदीन मंदिर के मुनादे से दिए नी तरफ परतापचंदजी की पाठी मुरती ताजा पाक मीनि तथापरताप दनीकी सरजायासपरिवारसमुरीया या पिनकीनी समिती निसरदर वाद सगजेबाकी को नहि जनपद नामजो प्रथा जिसे माझे कर्मरोग सभी एवं सुधार दिन गुरुसी । जितपुरमा ज्योतिमादिक रोप एत्यार सनिरमलजीत जज चीनबान नषसहजसमाना निप्पो जातक टीनसंग सीन श्री-श्री श्री॥ ॥श्र NEW TEMPLE PRASHASTI-AMARSAGAR.
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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