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________________ [ १४३ ] बाफणा हिम्मतरामजी का मंदिर । प्रशस्ति नं १ [2530]. (१) ॥ॐ नमः ॥ इदा ॥ ऋषनादिक चौबीस जिन पुंडरीक गणधार । मन वच काया एक कर प्रण वारंवार ॥ १ ॥ विघन हरण संप. (२) ति करण श्रीजिनदत्तसूरिंद । कुसल करण कुसलेस गुरु बंडूं खरतरद ॥ २॥ जाके नाम प्रनावतें प्रगटै जय जय (३) कार । सानिधकारी परम गुरु रहौ सदा निरधार ॥ ३ ॥ सं० १७५१ रा मिति थाषाढ सुदि ५ दिने श्रीजेसलमेरु नगरे महारा. (४) जाधिराज महारावलजी श्री १०७ श्रीगजसिंघजी राणावतजी श्रीरूपजी बारजी विजयराज्ये वृहत्स्वरतर जट्टारक (५) गछे जंगमयुगप्रधान नद्दारक श्रीजिनहर्षसूरिनिः २ पट्टप्रनाकर जंग । युः। ना। श्री १०७ श्री जिनमहेंउसूरिनि: ५ उपदेशा * श्री जैन श्वेताम्बर ओसवाल समाज में पटुआ वंश प्रसिद्ध है। इनका आदि गोत्र तो बाफणा हैं परन्तु ये लोग पटुआ नाम से परिचित हैं। इनके पूर्वजों का निवास स्थान जेसलमेर था। वहां बहुत ही सुन्दर कोड़नी के काम से पुसजित राज-प्रासाद तुल्य इन लोगों का उच्च और विशाल वास-भवन विद्यमान है। अमरसागर के उद्यान सहित प्रस्तर में जाली खुदे हुए इन लोगों का मंदिर भी दर्शनीय है। इस मंदिर के बायें तरफ बाहर की दालान में पच्छिम दीवार पर लगे हुए लम्बे पीले पापाण पर यह प्रशस्ति खुदी हुई है। पुरातत्ववेसा मुनि जिनविजयजो संपादित “जैनसाहित्य संशोधक' नामक पत्रिका के प्रथम खंड के पृ० १०८-१११ तक “जेसलमेर के पटवों के संघका धणेन” शीर्षक लेख में यह शिलालेख प्रथम प्रका. शित हुआ है । इस में शिलालेख की पंक्तियां नहीं दी हुई हैं और पाठ भी स्थान २ में मूल लेख से कुछ भिन्न है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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