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________________ [१६] (१७) । सर्वमेतत् श्रीसद्गुरुप्रसादानिर्विघ्नं संजात ॥ श्रीः ।। (११) उस्ता ! कंमू बीकानेरिया WaWONan श्री जिचंद्रसूरिजी का स्थान। [2503) (१) ॥ श्रीवषतकुंबरी नाम्नी माऊजी श्रीसोढीजीतः पुण्यकृतमिदं सि (१) ॥ ॐ ॥ संवत् १७२५ वर्षे शाके १६५० प्रवर्तमाने । मा. (३) र्गशीर्षासित पंचमी सोमे। श्रीजेसलमेरुमहाउगें म. (५) हाराजाधिराज महरावल श्रीमूलराजजीविजयग. (५) ज्ये। सकलसूरि शिरोमणि नट्टारक श्रीजिनकीति(६) सूरिराजानांपनाकर श्रीजिनयुक्तिसूरींक्षाणां । (७) स्तूप निवेशः कास्तिः श्रीजेसलमेरुवास्तव्य श्रीवृहत्(७) खरतराचार्य श्रीसंघेन । प्रतिष्ठितश्च श्रीजिनयुक्तिसूरि (ए) पट्टालंकार जट्टारक वृंददारकावतार श्रोजिनचंछ । (१०) सूरिराजैलिपी कृतं । पंडित जीमराज मुनि निश्च ॥ श्रीः । (११) दरवारसूं ऊपर उठ सिपाही धीरनदे इदानांणी दरोगां ॥ (१५) सिखावटा दरवाररां गछर गोदड़ नरसाँगाणी ॥ श्राचं "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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