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________________ [ १०५ ] बड़ा भंडार। मूर्ति पर। [2436] * ॐ संवत् १४७ वर्षे मार्गसिर वदि ३ दिने श्रीसुमतिबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनननसुरिनिः कारितं सं० सहसा जार्या मसी श्रेण __[24371 संवत् १५३५ वर्षे फागुण सुदि ३ रवौ उपकेशवंशे बाजहड़गोत्रे सं० वेगड़ा श्रेयोर्थ देवदत्त पुत्र मंत्री गुणदत्त ना सोमखदे तयोः पुत्रेण धर्मसिंहेन पुण् समरयादि परिवारस० ला पुण्यार्थ श्रीनमिनायविंचं का प्र० खरतर श्रीजिनधर्मसूरिपट्टे श्री (जनचंडसूरिनिः ॥ पट्ट पर। [2438} सं० १४५३ वैए सु० ३ ऊकेश सा देवदत्त नार्या देवलदे पुत्र सा० नगराज जार्या यशोण रामदे नार्या परमादे पुत्र्या श्राप सापू नाम्ना श्रीशांतिनाथचतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्रतिष्ठितः श्रीसूरिनिः ॥ - :-::-: यह लेख श्रीसंभवनाथजी के मंदिर के नीचे बड़े भंडार में रखी हुई खंडित पापण की मूर्ति के वरण चौकी पर सुदा हुआ है। 27 "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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