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________________ [३] (२३) लाह्या । सोनाने थाषरे श्रीकल्प सिद्धांतनां पोथां लिखाव्यां । श्रीजिनसमुख सूरि कन्हां श्रीशांतिसागरसूरि आचार्यनी प. (५४) द स्थापना करावी । श्रीश्रष्टापदतीर्थ विहु नूमिकाए जगति करावी बिंब मंडा. व्या । संप घेता नार्या सं० सरसति पुत्र (२५) संग वीदा सं० नोडा पुत्रिका धानू वीजू । सं० बोडा नार्या सं० नायकदे सं० पूनी । सं० वीदा जार्या सं० अमरादे सं० विमला. (२६) दे सं० विमलादे पुत्र सं० सहसमल सं० करणा सं० धरणा । पुत्रिका हरवू साधू हस्तू । सं० सं० सहसमझ नार्या सं० (३) कुंरी पुत्र जोमा सं० सवारी पुत्र डाहा सं० करणा सं० कनकादे पुत्र पीदा। पुत्रिका लाला सं० धरणा नार्या धरणिगदे पु(२) त्रिका वादही । इत्यादि परिवार सहित सं० वीद श्रीशत्रुजयगिरनाराबूतीर्थे यात्रा कीधी । समकितमो. (ए) दक घृत षांड साकरनी साहिणि कीधी श्रीजिनइंससूरिगलनायकनी वर्षग्रंथि . महोब्व कररी अली घर २ प्रत (३०) लाही । पांच मिनां ऊजमणा कीधा । पांच सोनश्या प्रमुख अनेक वस्तु ऊजम ण मांडी । श्रीकल्पसिद्धांतपुस्तक घणी. (३१) वार वचाव्या। पांचवार लाष नवकार गुणी चारसा जोडी अलीनी साहिणि कीधी । सं० सड्सम श्रीशत्रु (३२) जयतीर्थ यात्रा करी जूनगढि राणपुर वीरमगाम पाटण पारकरि पांड अही। खाहणि करी घरे आव्या "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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