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________________ [३७] (१३) सपरिकर श्रीनेमिनाथनां बिंब जरावी श्रीसंजवनाथनइ देहर5 मंडाव्या । समस्त कल्याणकादि (१४) कतपनी पाटो सैलमय करावी । सं० श्रासराज पुत्र सं षेता सं० पाता । सं० पेतः संवत् १५११ श्री शत्रुंजय गिर (१५) नास्तीर्थ श्रीसंघ सहित यात्रा कोषो । इम वरसइ २ तीर्थयात्रा करता संवत् १५२४ तेरमी यात्रा करी श्री शत्रुंज (१६) य करिब घरी गजता श्रीयादिनाथप्रमुखतीर्थकरनी पूजा करता व तप करी विलाप नवकार गुणी चतुि ( १७ ) घसंघनी जक्ति करी पण वित्त सफल कीधा || बल्ली चोपड़ा सं० पांचा पुत्र सं० सिवराज सं० मदिराज सं० खोला सं (१०) घवीलापण पुत्रिका सं० गेली | सं० बाषण पुत्र सं० सिवरा सं० समरा संत्र माला सं० महण सं० सदा सं० कुं. (१९) प्रमुख परिवारसहित चो० सं० लाषय संखवाल संग यसराज पुत्र संघ बेता एमिली श्रीजेसलमेरु नगरि ग ( २० ) ङ कारि विजूमिक श्री अष्टापदमहातोर्थप्रासाद कराव्या । सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने राजन श्री देवक राज्ये (२१) समस्त देसना संघ मेलवी श्री जिनचंद्रसूरि श्री जिनसमुद्रसूरि कन्हनि प्रतिष्ठा करावी श्रीकुंथुनाथ श्रीशांतिनाथ मूलन: ( 22 ) यक पाव्या । चवीस तीर्थंकरनी अनेक प्रतिमा जरावी । संव बेत समस्त मारुयाडि माहि रूपनाया सहित समकित लाडू 10 "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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