SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [22] पपट्टिका पर | [ 2144]* ( सिरोभाग में ) (१) • रत्नमूर्ति गषि ॥ वा० जितसेन गणि । पं० दर्षनप्रगणि। मेरुसुंदर गणि .. जयाकरगणि जीवदेत्र ग ( ॐ कार्त्तिक) वदि ( २ नाणं सं ) जवस्स (१२ चवणं ने) मिस्स ( १२ जम्मा १) उमस्स (१२ दिखा ) प मस्स ****** ( मध्यभाग में ) उ श् उ १ उ १ उ ‍ ( ॐ का ) र्त्तिक सुदि । ( ३ ना ) णं सुविद्दिस्त उ‍ (१२) नाणं रस्स उ श् (ॐ) मार्गशीर्ष वदि ॥ ५ जम्मों सुविदिस्स उ १ ६ दिखा सुविदिस्स उ २ १० दिक्खा वद्धमाणस्स उ २ ॐ मार्गशीर्ष सुदि ॥ १० जम्मो रस्स ११ दिक्खा रस्स ११ नाणं नमिस्स उ १ उ ‍ उ ‍ * यह तपपट्टिका पीले पाषाण में खुदी हुई है। इसके शिरोभाग के दोनों तरफ का कुछ २ अंश टूट गया है। इसकी लम्बाई २ फुट १० इञ्च और चौड़ाई १ फुट १०॥ च है। इसमें बांये तरफ प्रथम २४ तीर्थंकरों के व्यवन, जन्म, दोक्षा और ज्ञान चार कल्याणक की तिथियां कार्त्तिक वदि से आश्विन सुदि तक महीने के हिसाब से खुदी हुई हैं। इसके बाद तीर्थकरों की मोक्ष कल्याणक तिथियां भी महीनेवार हैं। दाहिने तरफ प्रथम ६ तपों के कोठे बने हुये हैं फिर इनके नियमादि खुदे हुये हैं। इसके नीचे वज्रमध्य और यवमध्य तवों के नकरी हैं और एक तरफ श्रीमहावीर तप का कोठा खुदा हुआ है और इन सभों के नीचे दो अंशों में लेख हैं। जो अंश टूट गये हैं, उनकी पूर्ति ( ) में दी गई हैं। आबू तीर्थ में भो ऐसा पंच कल्याणकों का महीनेवार लेख है। लेख के पोष सुदि में '११ नाणं अभिनंदणस्स' और '१४ नाणं भजियस्स' खुदे हैं। ये भ्रम हैं। अंक '११' के बदले '१४' और १४' के स्थान पर '११' होना चाहिये । "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy