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________________ [1006] संवत् १७२७ वर्षे ज्येष्ठ शुक्ल ७ रवी खरतरगछीय महोपाध्याय रामविनयगणिना प्रण पार्श्वबिम्बं । स्फटिक के बिम्ब पर। [1007] संवत् १७७७ मा । सु० १३ प्र । ख । श्रीजिनचन्द्र सूरिनिः। रोप्य के चरण पर। [1008] जंगम युग प्रधान नट्टारक श्रीजिनदत्त सूरीश्वराणां पाकुके । श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां पाउके। वीर संवत् २४० वि० १एतुए आषाढ शुक्ल १ चन्छे रांका गोत्रीय लालचन्द्र शेठेन श्रात्मकल्याणार्थ श्मे पाउके निर्मापित, श्री वृा खा गए ज० युग जट्टारक श्रीजिन चन्द्र सूरि विजयराज्ये श्रीमदिङ्मएमलाचार्य श्रीनेमिचन्प्रसूरि अन्तेवासि पं० श्रीहीराचन्प्रेण यतिना प्रतिष्ठापिते श्री शुनं नूयात् । शयिन म्युजियम-चौरङ्गी रोड । धातु की मूर्ति पर। [1000 ] * संवत् १४५७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ श्रीमूलसंथे प्रतिष्ठाचार्य श्रीपद्मनन्दि देवोपदेशेन... श्रीजीमदेव । नार्या महदे । सुत गणपति नार्या करमू ॥.........''प्रणमति । अजिमगञ्ज-मुर्शिदाबाद। श्रीनेमनाथजीका मन्दिर। पञ्चतीर्थियों पर। [1010] संवत् १५१७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि श दिने सोमवारे उकेश वंशे लोढा गोत्रे साए वीशल नार्या * यह चौविशी हाल में यहां पर दिल्ली से आई है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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