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________________ (२) पंकः श्रिया वे सुन (३) स्तु पुन्नक श्राद्धः सी (४) लगल सूरि नक्तश्चन्द्र कु (५) ले कारयामासः ॥ (६) संवतु (७) १०७२ [1002] संवत् १६४५ वर्षे पो सुप १५ सोमे श्रीअजित बिंब का सा नानू जुदिङकेन प्रण श्रीहीरविजय सूरि। धातुकी चौविशी पर। [1008] ॥ श्रीमन्निवृतगछे संताने चाम्रदेव सूरीणां । महणं गणि नामाद्या चेली सर्व देवा गणिनी ॥ वित्तं नीतिश्रमायातं वितीर्य शुलवारया। चतुर्विंशति पट्टाकं कारयामास निर्मलं ॥ हीराखालजी गुलाबसिंहजी का देरासर-चितपुर रोड । धातु की चौविशी पर। [ 1004] संवत् १५०६ वर्षे श्रीश्रीमालझातीय दोसी मँगर नार्या म्यापुरि सुत मुंजाकेन जार्या सोही सुत वीका युतेन आ श्रेयसे श्रीसुविधिनाथादि चतुर्विंशति पट्टः कारितः आगमगछे श्रीअमरसिंह सूरि पट्टे श्रीहेमरत्नगुरूपदेशेन प्रतिष्ठितः॥ गन्धार वास्तव्य ॥ शुनं नवतु ॥श्लीः॥ - खानचन्दजी सेठ का घर देरासर-पुलिस हस्पिटैल रोड । पाषाण की मूर्तियों पर। [10051 संवत् १६५३ ज्येष्ठ शुक्ल ५ महोपाध्याय युग प्रण विजयेन प्रतिष्ठितं जं । यु ।प्र।न श्रीजिनरंगसूरि राज्ये। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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