SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २३१ ) (३) या घांघ गोत्रे साइ श्री माब्द तत्नार्या सरूप दे तत्पुत्र संघवि श्री कान्ह जि तस्य वृद्धि जार्या दीपां लघु जार्या सूषम दे पुत्र चिरंजिवी पुन्यपाल सहितेन श्री प्रसाद बिं ( ४ ) चं ॥ श्री रूपनदेव बिंबं स्थापितं प्रतिष्ठित मलधार गछे जहारिक श्री महिमा सागर सूरी तत्पट्टे श्री कल्याणसागर सूरिनिः प्रतिष्ठितं धर्माचार्य विजामति । उदय सागर सूरिः । शुनं । पंचतीर्थयों पर । [ 1900 ] WA " || || सं० १४९५ वर्षे फा० सुदि २ दिने ओसवाल ज्ञातीय सा० ऊाऊण पु० सा० जुदा सुभावक जार्या रतनु तत्सुतेन सा० सोमाकेन पुत्र देवदत्त जगमालादि सहितेन श्री कुंघुनाथ विषं का० प्रतिष्ठितं खरतर गछे श्री जिननत्र सूरिजिः ॥ श्री ॥ [1801] || सं० १४० माद सुदि ६ सोमे उ० ज्ञा० गूंदोवा गोत्रे सा० लाषा जा० खाषण दे पु० मेहाकेन जा० मयल दे पु० पित्रवाल रणपालादि सह नाई देता जा० तल दे निमित्तं सुमतिनाथ का० प्र० चैत्र गछे श्री मुनितिक सूरि गुणाकर सूरिजिः ॥ [1902] ॥ संवत् १५२० वर्षे वै० ० ४ शुक्रे प्रा० ज्ञातीय प० चपली जा० पोमादे सु० सांगाकेन जा० दई सुत करण चा० सदसादि कुटुंबयुतेन स्वमातृपितृश्रेयसे कुंथुनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपा श्री लक्ष्मीसागर सूरिनिः । जाड़जलि ग्राम वास्तव्यः ॥ चौवोशी पर । [ 1903 ] || सं० १५११ ० आषा० ० ० श० उपकेश ज्ञातौ श्रादित्यनाग गोत्रे घाधू शा० सा० "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy