SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४७) मूर्ति और पंचतीथियों पर। [ 1813] सं० १७०५ व0 वै० व० लवकेश ज्ञा० सा कान्ह जी सुत वीरचंद नाना श्री विमलनाथ कारि० प्रति तर श्री विजयदेव सूरिनिः । जय । [1614] सं० १७१० व0 जैण् सु० ६ मि० प्राग्वाट लघुशाशयां श्री व्य० मं० मनजीकेन सुपार्श्व विवं कारितं । प्रतिष्ठितं तपा विजयराज सूरनिः। [1615] सं० १९२४ माघ शुक्ल १३ गुरौ श्री सुविधिनाथ जिन बिंवं श्रीमाल जांडिया कन्हैयासास तद्भार्या छ्नु श्रेयोर्थे न० श्री शांतिसागर सूरि निः प्रति विजय गछे । [136] सं० १ए५४ माघ शुक्ल १३ गुरौ श्री अनंतनाथ जिन विवं श्रीमाल टांक गोत्रे हस. मतरायजी तत्पुत्र हजारीमलेन का रितं प्रा श्री विजय गच्छे न श्री शांतिसागर सूरिभिः। ___ [16:7] संघ १९५४ माघ शुक्ल १३ गुरौ श्री आदिनाथ विंचं ..." निहालचंदण कारितं प्रतिष्ठितं विजय गच्छे श्री शांतिसागर सूरिभिः श्रेयोर्थ । [ 1618] संत एए४ माघ शुदि १३ गुरौ श्री पार्श्वनाथ विंबं श्रीमाल पारड़ गोत्रे पड़चंद [?] तत्पुत्र श्री कपूरचंप्रेण का रितं । प्रजा श्री पूज्य शांतिसागर सूरिनिः। विजय गजे। [1310] सं० १५२७ चैत्र २० १० गुरौ श्री श्रोपस व मिडीया सोश जावड़ न जमादे "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy