SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( o ) हीरानंदेन बिम्बं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री खरतरगच्छे श्री जिनवर्धन सूरि संताने . श्री लब्धिवर्धन शिष्येन। [1452] श्रीमत्संवत १६२१ वर्षे वैशाख सुदी ३ श्री आगरावासी उसवाल ज्ञातीय चोरमिया गोत्रे साह " पुत्र साप हीरानंद नार्या हीरादे पुत्र सा जेठमल श्रीमदंचलगछे पूज्य श्रीमद्धर्मममूर्ति सूरि तत्पट्टे .... पाषाण के चौविशी के चरण पर । [1453] संवत १७६५ ज्येष्ठ शुक्ल १३ गुरुवारः श्री सिंघाड़ो बाई ने बनाया। श्री आगरा वास्तव्य व्या संघपति श्री श्री चंपालेन प्रतिष्ठा कारिता । शिलालेख । [1454] ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ संवत् १६७७ वर्षे आसोज सुदी १५ श्री अर्गलपुरे जलालूदीन पातिसाद श्री अकब्बर सुत जहांगीर सुत सवाई साहिजां विजयराज्ये " राजद्वार शोजक सोनी ... श्री होरानंद " श्री जहांगीरस्य गृहे ... कृतं। तत्र तस्य नंदनबनोयानसमवाटिकायां निज धनस्य - भार्या सोना सुत निहालचंद नार्या भृगां खोटंग पुत्र चिरं सहसमल सना श्री गंगाजल वारि पूरपूरित निर्मल कूपः कागपितः ॥ आचं. माकं यावतिष्ठतु ॥ [1455 ] * ॥ ॥ श्री सशुरुन्यो नमः ॥ सत्पदोत्तुंग,गोदयं शिखरि शिखा जानु बिबोपमाना जैनोपज्ञास नटे मंदिर के बगल में जो जहाई काम को नई वेदो और सभामंडप बने हैं उसके दाहिने तर्फ उपर में यह शिलालेग लगाया दवा है। इसकी लंबाई अंदाज २ फिट और चौडाई १॥ फिट है और मामूली पत्थर है। शिलालेख के निचे ४ यंत्र है (१) २. का (२)१५ का (३) ३४ का और (४) १७० का बदा हुवा है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy