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________________ (५५) लालबाग का मंदिर। [222] सं० १५३ए ब बै० शु०३ सोमे प्रा० बृ० मं माया ना बरजू पु० सीधर ना मांजू पुत्र गोरा ना रुकमिणि पु० बर्द्धमान मातृ पितृ श्रेण श्री कुंथुनाथ विकारापितं प्रण तपा० श्री लक्ष्मीसागर सूरिजिः। [223] सं० १६७३ फा० सि० ११ श्री हीर विजय शिष्य श्री विजयसेन सूरिनिःप्रा श्रादि नाथ -- [224] सं. १७33 चैत्र सु. १५ - - वि श्री जिनहर्ष सूरिणा E = महतावचदं नायी श्राविका -- च्या गुलाबचंद पुत्र युतया --। [225] सं० १७९६ ज्येष्ठ बदि ज्योसवास ज्ञाती जम्मड गोत्रीय बावु प्रेमचंद तत्पुत्र विहारी झालेन श्री सिद्धचक्र पढे कारापितं प्रतिष्ठितं विष्णुदय गणिना। पाषाण पर। [228] संवत १५५४ जेष्ठ बदि ४ श्री उपकेश ज्ञातौ साह श्री शक्तिसिंघ जा सहजखद - -- साह सोमा नार्या श्रापु नाम्न्या आत्म श्रेयसे श्री अजितनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री उपकेश गडे श्री कक्क सूरिनिः॥ श्री अजितनाथ प्रणमति बाई श्रापू नाम्न्या :
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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