SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (v) धर्मशाखा धावत्या देरासरमा पपासणो गोखलायो दरवाजो नमतीनी देरी = ४ सहीत मर पारसनु काम तथा सखावनी प्रीत तथा रीपेर बीगरे जीर्णोद्धार करावा भी शुनं जयतु सदा । सबाट प्राचंद नगजीवन मीनी पानीताणा वाखा -- । तीर्थ श्री पावापूरी। शासन नायक श्री महावीर स्वामीका यह निर्वाण कल्याणक का स्थान जेनीयोंका प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र है। २४ मां तीर्थकर के समवसरण की रचना और उनका मोक्ष यहां गये हैं। समवसरण के स्थानमें १ स्तंन वर्तमान दे कोई लेख नही है। वहांसे प्राचीन घरण उगकर जलमंदिर के पासमें तलावके पाड़ पर विराजमान हुथे हैं। अग्निसंस्कार की जगह तालाव और मंदिर है। प्राचीन मंदिर १ गांव में है और नवीन मंदिर = १ खेताम्बरी और १ दिगम्बरी उस तालाब के पाड़में पनाहे और कई धर्मसालायें है। समवसरणजी के प्राचीन चरणों पर । V [181] सं० १६४५ वर्षे बैशाख सुदि३ गुरो श्री----- कनकविजय गणिनिः---। (अक्षर घस जानेके कारण पढ़ा नही जाता) ___ जसमंदिर - पावापुरीजी भी गोतमखामीजीके चरणोंपर । 2 [ 182 ] सं० १९३५ मि० मा शुक्र एवं गोतम गपधर पाका काराप्तिं उसवान चोमिया
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy