SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१८) सुतेन सह समयरेण स्वश्रेयसे श्री जीवत्स्वामि श्री सुपार्श्वनाथ विवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री वृहत्तपा पक्षे श्री रत्नसिंह सूरिनिः शुभंजवतु । J[70] सं० १५३० वर्षे माघ सुदि ५ शुक्र सांबोसण वासि प्राग्वाट ज्ञा० व्य० सोना ना माऊ पु० व्या नारद बंधु व्य० विरूआकेन नावीन्दणदे पु० देधर मेला साश्यादि कुटुंब युतेन निज श्रेयसे श्री सम्नवनाथ विवं का०प्र० श्री तपा गछे श्री खदमीसागर सूरिभिः । J[1] सं० १५०३ शाके १७६७ प्रवर्तमाने माघ कृष्ण ५ भृगु थहमदावाद बास्तव्य उत्सवाल झाती बृद्ध शाखायां सा० केसरीसिंद तत्पुत्र साह विसंघजि तत्नार्या रुषमणी खयर्थे श्री थादिश्वर जिन विवं जरापितं श्री शांतिसागर सुरिनिः प्र०॥ श्री जगत्सेवजी का मन्दिर - महिमापूर । J [72] सं० १५५५ वर्षे माघ यदि १ गुरो प्रा० झा० म० जेसा ना० सुरी पुत्र सर्वणेन ना० रूपा मातृ पितृ श्रेयसे खश्रेयसे श्री कुंथुनाथ विवं का०प्र० श्री साधु पूर्णिमा पक्ष श्री पुण्यचं सुरीणामुपदेशेन विधिना श्री बिजयचंऽ सुरिनिः ॥ श्री रस्तु । V [73] सं० १५३६ ब० फा० सु० १५ प्राग्वाट व्या होरा ना० रूपादे पुत्र व्य० देपा ना० नीमति पु० गांगाकेन जा नाथी पुत्र मेरा लातृ गोगादि कुटुंब युतेन श्री नमिनाय विवं का० प्र० तपा ग श्री पदमीसागर सरिनिः । पीमरवाड़ा प्रामे मुंगलिया वंशे श्रीः ।
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy