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________________ ( २१०) ( 000 ) संवत् १२९४ वर्षे श्री मालीय श्रे० वीसल सुत नाग देवस्तत्पुत्रो देल्हा सलक्षण सोपाख्याः कांवा पुत्रो वीजाकस्तेन देवड़ सहितेन पितृकां श्रेयो) श्री जावालिपुरीय श्रा महावीर जिन चैत्ये करोदि कारिताः ॥ शुभं भवतु ॥ __ . ( 001 ) संवत् १३२० वर्षे माघ सुदि १ सोमे श्रो नाणकीय गच्छ प्रतिबद्ध जिनालये महाराज श्री चंदन विहारे श्री क्षी व रायेश्वर स्थान पतिना महारक रावल लक्ष्मीधरेण देव श्री महावीरस्य आसोज मासे अष्टाहिका पदे द्रम्माणां १०० शप्तमेकं प्रदत्त ॥ तद्वयाज मध्यात् मठ पतिना गोष्ठिकैश्च द्रम्म १० दशकं वेधनीयं पूजाविधाने देव श्री महावीरस्य ॥ ( 903 ) ओ संवत् १३२३ वर्षे माग सुदि ५ बुधे महाराज श्री चाचिग देव कल्याण विजय राज्ये तन्मुद्रालंकारिणि महामात्यः श्री जलदेवे ॥ श्री नाणकीय गच्छ प्रतिबद्ध महाराज श्री चंदन विहारे विजयिनि श्री मटुनेश्वर सूरी तैलं गृह गोत्रोद् भवेन महं नरपसिना स्वयं कारित जिन युगल पजा निमित्तं मठ पति गोष्ठिक समक्ष श्री महावीर देव मांडागारे द्रम्माणां शनार्दु प्रदत्त ॥ तव्याजोसवेन द्रम्मान नेचकं भासं प्रति करणीयं ॥ शुभं भवतु ॥ ( 903 ) ओं॥ संवत् १३५३ वर्षे वैशाख यदि ५ सोमे श्री सुवर्ण गिरी अद्येह महाराज कुल श्री सामंतसिंह कल्याण विजय राज्ये सत्पादपद्मोपजीविनिn राज श्री कान्हदेव राज्य धुरामुद्वहमाने इहैव वास्तव्य संघपति गुणधर ठकुर आंबड पुत्र ठकुर जस पुत्र सोनी महणसीह भार्या माल्हणि पुत्र सोनी रतनसिंह णाखी माल्हण गजसीह तिहुणा पुत्र सोनी नरपति जयता विजयपाल नरपति भार्या नायकदेवि पुत्र लखमीधर भुवण
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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