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________________ (२२८) निज गुरु श्री शालि भद्र सूरि मूर्ति पूजा हेतो श्री सुमति सूरिभिः । प्रदतात् बलाः ५ मास पाटकेने चके व्ययनीयाः ॥छ॥ ( 880) ॥ॐ॥ संवत् १२९७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ गुरौ बासहड़ वास्तव्य अजाजल गोत्र श्रेष्ठ चांदा सुत नाना ...- देव सधोरण सुत आस पाल गुण पाल सेहड़ सुत पूस देव सायूदेव पूसदेव सुत धण देव सहड़ मायां शीत पुत्रिका साजणि जाल्ह सती रण भार्या राहीअई - . - - सेहड़ भार्या अइहव सूमदेव भार्या मदावति सावदेव भार्या प्रहल सिरि कुटुब समुदायेन सेहड़ेन मार्या समन्वितेन देव कुलिका कारापिता ॥ मेद पुत्रिका देह साहुसा उसभ दासेन सुभं भवत् ॥ सांडेराव । यह भी मारवाड़के पाली जिलेमें है। श्री शांतिनाथजी का मंदिर । ( 881 ) श्री पंडेरक चैत्ये पंडित। जिन चन्द्रण गोष्ठियुतेन धीमता देव नाग गुरो मूर्ति कारिता घिरपाल मुक्ति बांछतां सं० ११४६ वैशाख वदि--। ( 882 ) सं. १२ - - वर्षे फागुण सुदि ११ गुरौ अद्य हे श्री षंडेरक निवासी श्रेष्टि गुणपाल पुत्रीकाया गो--- ला -- सुखमिणि नामिकाया। श्री महावीर देव घेत्ये चतुष्फिका कागपिता ।
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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