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________________ ( २२७ ) यशोदेवो बलाधिपः। राज्ञां महाजनस्यापि समायामग्रणी स्थितः ॥७॥ श्री पंडेरक सग्दच्छे बंधूनां सुहृदां सतां। नित्योपकुर्वता येन न श्रांतं समचेतसा ॥८॥ तत्सतो बाहडो जातो नराधिप जन प्रियः। विश्व कर्मेव सर्वत्र प्रसिद्धो विदुषां मतः ॥तत्पुत्रः प्रथितो लोके जैन धर्म परायणः । उत्पन्नः थल्लको राज्ञः प्रसाद गुण मंदिर ॥१०॥ दया दाक्षिण्य गांभार्य बुद्धिचिध्यान संयुतः। श्री मस्कटुक राजेन यस्य दानं कृतं शुभं ॥ ११॥ माद्येयंवक संप्राप्तो वितीणं प्रति वर्षकं । द्रम्माष्टकं प्रमाणेन घल्लकाय प्रमोदतः ॥१२॥ पूजार्य शांति नाथस्य यशोदेवस्य खत्तके। प्रवर्द्धयतु चंद्रार्क यावदादनमुज्वलं ॥ १३ ॥ पितामहेन तस्येदं समीपादयां जिनालये। कारितं शांति नाथस्य बिंबं जन मनोहरं ॥१४॥ धर्मेण लिप्यते राजा पृथ्विी भुनक्ति यो यदा। ब्रह्महत्या सहस्रेण पातकेन विलोपयन् ॥१५॥ संवत् ११७२ ॥ (877) ॐn संवत् ११९८ असोज यदि १३ रयो अरिष्ट नेमि पूर्व दिसायां अपवरिका अग्रे भित्ति द्वार पत्रे चर्तुलनाते कत्तु मम च गोष्ठ्या मिलित्वा निषेधः कृतः ॥ लिखितं पं० अश्वदेवेन। ( 878 ) सं० १२४१ मासाढ यदि रवी ओ संभव देव फागुण सुदि चवण ...लर .. पधर --- ॥ - - - - सुदि १४ जंसो- - - हेकर जिसं देव ॥ - - - सुदि १५ विरवार -..- हेतु श्री बहेव ॥ - - - कार्तिक यदि ५ माणु --- देव पास देव ॥ - - - सुदि ५ रवी --- ण शांवव ॥ 1 ( 879 ) *॥ सं० १२५१ कार्तिक वदि १ रवी अय वाससा नालिकेर ध्वजा खासटी मूल्यं
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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