SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २२० ) कदाचिदन्यदा चित्त विचिंत्य चपलं धनं । गोष्ट्याच राम गोसाभ्यां कारितो रंग मंडपः ॥३॥ भद्रं भवतु। (863 ) संवत १२३८ पौष बदि १० वला नागू पुत्र थे. उद्धरण भार्यया श्री. देवणाग पुत्रिकया उत्तम परम श्राविकया स्व श्रेयोर्य श्री पार्श्वनाथ देव चैत्य मंडपे स्तंभोयं कारितः। J ( 864 ) अ॥ संवत १२३८ पौष वदि १० श्री मांय कुमार पुत्र श्री. धवल भार्यया वला. नागू पुत्रिकया संतोस परम धाविकया स्व श्रेयार्थ श्री पा। J ( 865 ) ॐ सं० १२६५ वर्षे यांथां भार्या तिण देवि तत्पुत्रिका पउसिणि पुत्र गोसा मार्या लक्षा श्री पाल्हाया --- माल्हा-.--भार्या श्री ति---- भार्या ---न भार्या पूरी श्री गोसाकेन सकल बंधु सहितेन सोहि । J( 666 ) ___ ॐ गच्छे श्री नाणकाभिख्ये सुधर्म सुत वल्हणः। अमुच्चारित्र संयुक्तो वाल भद्रो मुनिः पुरा ॥१॥ तच्छिष्यो हरिचंद्राह्वो मुनिचन्द्र - - परः। तदन्वये धनदे - - पाव दे। घोस सोमको ॥२॥ पार्श्व देवः स्वशिष्येन वीर चंद्रण संयुतः। लगिकां कारयामास गुरु कंद विषद्धये ॥३॥ ( 867 ) ओं संवत १२६५ वर्षे धर्कट वंशे भार्या जिन देवि तत्पुत्री पंचगोसा० सदेव भार्या सुखमति तत्सुत थांथां काल्हा राल्ह घोर सीह पाल्हण प्रमुख गोसा पुत आमू
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy