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________________ ( २१७ ) 856 ) - संवत् १९८६ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्ष शनि पुष्य योगे अष्टमी दिवसे महाराणा श्री जगत सिंह जी विजय राज्ये जहांगोरी महा सपा विरुद धारक अहारक श्री विजय देव सूरीश्वरोपदेश कारित प्राक प्रशस्ति पहिका ज्ञात राज श्री संप्रति निर्मापित श्री जेषल पर्वतस्य जीर्ण प्रासादोधारेण श्री नडु लाई वास्तव्य समस्त संघेन स्वयसे श्री श्री आदिनाथ विंवं कारित प्रतिष्ठितं च पातशाह श्री मदकधर शाह प्रदत्त जगद्वगुरु विरुदधारक तपागच्छाधिराज अहारक श्री श्री श्री श्री श्री होर विजय सूरीश्वर पह प्रभाकर भ० श्री विजय सेन सूरीश्वर पहालंकार प्रभु श्री विजयदेव सूरिभिः स्व पद प्रतिष्ठिताचार्य श्री विजय सिंह सूरि प्रमुख परिवार परिवृत्तः श्री नडुलाई मंडन श्री ज़खल पर्वतस्य प्रासाद मूलनायक श्री आदिनाथ विवं ॥ श्री ॥ - श्री नेमिनाथजी का मंदिर । ( 857 ) ओं नमः सर्वज्ञाय ॥ संवत् ११८५ आसउज वदि १५ कुजे ॥ अद्यह श्री नडूलडागिकायां महाराजाधिराज श्री रायपाल देवे। विजयीराज्यं कुर्वतस्ये तस्मिन काले श्रो मदुर्जित तीर्थः श्री नेमिनाथ देवस्य दोप धूप नैवेद्य पुष्प पूजाद्यर्थ गुहिलान्वयः । राउत उधरण सूनुना मोक्तारि १४० राजदेवेवन स्व पुण्याय स्वीयादान मध्यात् माग्गे गच्छता नामा गतानों वृषभानां शेकेषु यदा भाव्यं भवति तन्मध्यात् विंशतिमो भागः चंद्रा यावत् देवस्थ प्रदत्तः ॥ अस्मद्वंशीयेनाम्येन वा केनापि परिपंथना न करणीया॥ अस्मदत्त न केनापि लोपनीयं ॥ स्वहस्ते पर हस्ते वा यः कोपिं लोपयिष्यति । तस्याह करे लग्नो न लोप्य मम शासनमिदं ॥ लि. पांसिलेन ॥ स्व हस्तोत्रं सामिज्ञान पूर्वकं राउ. राज देवेन मतु दत्त ॥ अत्राहं साक्षिण ज्योतिषिक दूदू पासूनुमा गूगिना ॥ तथा पला. पाला पधित्रा १ मांगुला ॥ देवसा । रापसा ॥ मंगलं महा श्रीः॥
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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