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________________ (२०७) ( 83.5 ) संवत् ११३२ वर्षे पोह सुदि-यत्रत जैता भार्या कह पुत्र नामसी मार्या कमालदे पितब्य निमित्तं श्री शांति नाथ विवं कारापित्त प्रतिष्टितं श्री नांवदेव सूरिभिः ॥ (836 ) सं० १४८५ वै० शु० ३ बुधे प्राग्वाट श्री समरसी सुत दो० धारा भा० सूहबदे सुत दो महिपाल भा. माल्हणदे सुत दो० मूलाकेन पितृव्य दो. धर्मा भ्रातृ दो० माईआभ्यां च दो० महिपा श्रेयसे श्री सुविधिविंवं कारितं प्रतिष्टितं श्री तपागच्छेश श्री सोम सुदर सूरिभिः। (837 ) श्री चन्दा प्रभु विवं। सं० १६८६ प्रथमाषाढ़ वदि ५ शुक्र राजाधिराज श्री गज सिंह प्रदत्त सकल राज्य व्यापाराधिकारेण मं० जेसा सुत जयमल्ल जी नाम्ना श्री चन्द्र प्रभु विवं कारितं प्रतिष्टापितं स्वप्रतिष्ठायां श्री जालोर नगरे प्रतिष्ठितं च तपागच्छाधिराज भ०। श्री हरि विजय सेन सूरि पहालंकार भ। श्री विजय सेन सूरि पहालंकार पातशाहि जहांगीर प्रदत्त महासपा विरुद धारक १० श्री ५ श्री विजयदेव सूरिभिः स्व पद प्रतिष्ठिताचार्य श्री विजय सिंह सुरि प्रमुख परिवार परिकरितैः राणा श्री जगत सिंह राज्ये नाहुल नगर राय विहारे श्री पद्मप्रभ विवं स्थापित । ( 838 ) संवत् १६८६ वर्षे प्रथमाषाढ व०५ शुक्र राजाधिराज गजसिंह जी राज्ये योधपुर नगर वास्तव्य मणोत्र जेसा सुतेन । जयमल जी केन श्री शांतिनाथ विंव कारित
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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