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________________ (२०१) सुपार्श्व विंब कारितं प्रतिष्ठापितं स्व प्रतिष्ठिायां प्रतिष्ठितं पातशाह श्री मदकवर शाह प्रदत्त जगद्गुरु विरुद धारक सप गच्छाधिपति प्रतिष्ठिताचार्य श्री विजय सेन सूरि। J ( 828 ) से० १७०० वर्षे माघ सित द्वादश्यां बुधे श्री श्री योधपुर वास्तव्य उसवाल ज्ञातीय मुहंणोत्र गोत्र जयराज भार्या मनोरथ दे पुत्र सुभा पु. ताराचन्द भोज राजादि युतेन श्री शीतल पार्श्व वीर नेमी मूर्ति स्फूर्ति मस्कोशं विशन्ति जिन विंव विराजित दल दशकं चतुर्विशति जिन कमल कारितं प्रतिष्ठितं सपा गच्छे भहारक श्री विजय देव सूरि आचार्य श्री विजय सिंह निदेशात् उ० सप्तमे चंद्र गणिमिः । श्री गौड़ी पार्श्वनाथजीका मंदिर । । मूलनायकजी पर। (829 ) __ संवत् १६८६ वर्षे वैशाख सुदि ए राजाधिराज महाराज श्री गजसिंह विजय मान रोज्ये मेड़ता नगर वास्तव्य ---- हा वंशे कुहाड़ गोत्रे सा. हरषा भार्या मिरादे पुत्र सा० चसवंत केन स्व श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ विवं कारितं स्थापितं च। महाराणा श्रीजगतसिंह बिजय राज्ये श्री गोड़वाड़ देशे श्री विजयदेव सूरीश्वरोपदेशतः वीघरला। वास्तष्य समस्त संघेन। शिशरिराया उपरि निर्मापितेन विवेन प्री० श्रा प्रतिष्टितंच तप गच्छाधिराज अहारक श्री मदकवर सुरत्राण प्रदत्त जगद्गुरु विरुद धारक H० हीर विजय सूरीश्वर पह प्रभाकर महारक श्री विजय सेन सूरीश्वर पहालंकार महारक श्री विजय देव सूरिभिः स्वपद प्रतिष्ठाचार्य श्री विजय सिंह सूरि प्रमुख परिकर परिकरितः।
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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