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________________ ( १६८ ) ( 705 ) - शत्रुजयके नक्सके निचे। ॥ॐ ॥ सं० १५०७ वर्षे माघ सु० १० अकेश वंशे स० भीला भा० देवल सुत सं० धर्मा सं० केल्हा भा० हेमादे पुत्र स० तोल्हा षांगां मोल्हा कोल्हा आल्हा साल्हादिभिः सकुटुवैः स्वश्रेयसे श्री राणपुर महानगर त्रैलोक्य दीपकाभिधान श्री युगादि देव प्रासादे ... धन्त -- महातीर्थ शत्रु जय श्री गिरनार तीर्थ द्वय पहिका कारिता प्रतिष्ठिता श्री सूरि पुरंदरैः ॥ सीर्थनामुत्तमंतीय नागानामुत्तमा नगः। क्षेत्राणामुत्तमं क्षेत्र सिद्धाद्रिः श्री जिं -- -मं ॥ १ श्री रुसुपूजकस्य ---। v ( J06 ) संघत १५३५ वर्षे फाल्गुन सुदि-दिने श्री उसवंशे महोरा गोत्र सा० लाघा पुत्र सा० बीरपाल मा० नेमलादे पुत्र सा• गयणाकेन मा० मोतादे प्रमुख युतेन माता विमलादे पुण्यार्थं श्रोचतुर्मुख देव कुलिका कारिता ॥ - ( 707) ॥ ॐ ॥ सं० १५५१ वर्षे माघ बदि २ सोमे श्री मंडपाचल वास्तव्य श्री उश वंश शंगार सा• धर्मसुत सा० नरसिंग मा० मनकू कुक्षि संभूत सा० नरदेव भार्या सोनाई पुत्ररत्न सा० संग्रामेन कायोत्सर्गस्थ श्री आदिनाथ विवं कारितं । प्र० ३० तपा श्री उदयसागर सूरिभिः स्थापित श्री चतुर्मुख प्रासादे धरण विहारे ॥ श्री ॥
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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