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________________ ( १५५) सुत सोनी वमलदास सोनी धर्मदास सोनी रूपचन्द पुत्री वाई शीत्ति एतेन श्री विजयनाथस्य विवं कारापितं श्री तपगच्छाधिराज श्री विजयदेव सूरि राज्ये प्रतिष्ठितं आचार्य श्री विजयसिंह सूरिभिः। श्री गौडी पार्श्वनाथजी का मन्दिर । ( 657 ) सं० १३८३ वैसाख वदि ७ सोमे पल्लिवाल पदम भा. कोल्हण देवि श्रेयसे सुत कीकमेन श्री महावीर विंवं कारितं प्रति. ( 658 ) सं० १४८६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ नाहर गोत्रे सं । आसो सुतेन देवाकेन स्ववांधव सहजा हरिचन्द पनि षेता-श्रेयो निमित्त श्री विमलनाथ विवं कारापितं प्र. श्री हेम हंस सूरिभिः । ( 659 ) सं० १५०५ वर्षे माघ सुदि १० रवी उकेश वंशे मीठडीआ सा. साईआ भार्या सिरीआदे पुत्र सा० मोला सा सुश्रावकेण भार्या कन्हाई लघु भ्रातृ सा० महिराज हरराज पघ राज भ्रातृध्य सा• सिरिपति प्रमुख समस्त कुटुंव सहितेन श्री विधिपक्ष गच्छपति श्री जयकेशर सूरिणापमुदेशेन स्व श्रेयोर्थं श्रो सुविधिनाथ विवं प्रतिष्टितं श्री संघेन ॥ आचन्द्रार्क विजयतां ॥ (660 ) सं० १५१५ वर्षे माह शुदि ५ शनी प्राग्वाट ज्ञा०म० राउल भा० राउलदे द्वितीया हांसलदे सु• मूलू भा० अर) सु० भोजा हासा राजा मा० भकू सु० हीरामाणिक हरदास
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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