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________________ स्वर्ण गिरि । ( 256 ) सं० १५०४ फागुण सुदि दिने महतियाण क्शे जाटडगोत्रे सं० देवराज सं० पीमराज पुत्र सं० सिवराजेन । भार्या सं० माणिकदे पुत्र सं० रणमल धर्मदास सकुटुम्वेन श्री आदिनाथ विवंकारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिन वर्द्धन सूरिप श्रीजिन चन्द्र सरि पह श्रीजिन सागरसूरीणां निदेसेन वाचकाचार्य शुभ शील गणिभिः श्रीखरतर गच्छे । वैभार गिरि। '( 27 ) सं० १५२४ आषाढ़ सुदि १३ खरतर गणेश श्रीजिन चन्द्रसूरि विजय राज्ये तदादेशे श्रीवैमार गिरौ मुनि मेरूणा मि० ॥ -- श्री कमल संयमोपाध्यायः स्वगुरु श्री जिन भन्द्र सूरि पादुके प्र० का० श्री माल वं० भीषू पुत्र ठ० छीतमल श्रावकेण । ( 238 ) सं० १५२७ आषाड सुदि १३ श्रीजिन चंद सूरिणामादेशेन श्री कमल संयमोपाध्यायः घनाशालि भद्र मूर्ति-- का० प्र० पीमसिंह (?) आवकेण । J( 259 ) ॐनमः ॥ सम्वत १८२६ वर्षे माघ मासे शुक्ल पक्षे १३ तिथौ श्री आदिनाथ जिन चरण कमले स्थापितं हुगली वास्तव्य ओसवंशे गांधि गोत्रेबुलाकीदास तत्पुत्र साह माणिक चंदेन राजगृहे वैभार गिरे जीर्णोद्धार करापितं ॥ स्वपरयोः शुभाय ॥ श्री॥
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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