SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 18 ग्रंथ और ग्रंथकार टीकाकार मल्लिपेण मल्लिपेण नामके अनेक जैन आचार्य हो गये हैं। हेमचन्द्रकी अन्ययोगव्यवच्छेदिकाके ऊपर स्याद्वादमंजरी टीका लिखनेनेवाले प्रस्तुत मल्लिपेणसूरि श्वेताम्वर विद्वान हैं। मल्लिपेणने अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिकाकी टोकाके अतिरिक्त अन्य कौनसे ग्रन्थोंकी रचनाको है, ये कहांके रहनेवाले थे, आदि बातोंके संबंध में कुछ विशेप पता नहीं लगता । स्याद्वादमंजरीके अंतमें दी हुई प्रशस्तैिसे केवल इतना ही मालूम होता है कि नागेद्रगच्छीय उदयप्रभसूरि मल्लिपेणके गुरु थे, तथा शक संवत् १२९४ ( ई. स. १२९३) में दीपमालिका १. पं. नाथूराम प्रेमीजीने अपनी विद्वद्रत्नमाला (प्रथम भाग ) में मल्लिपेण नागके दो दिगम्बर विद्वानों का उल्लेख किया है । एक मल्लिपेण उभयभापाचक्रवर्ती कहे जाते थे, जो संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओंके महाकवि थे। अब तक इनके महापुराण, नागकुमार महाकाव्य, और सज्जनचितवल्लभ नामके तीन ग्रन्थोंका पता लगा है। दूसरे मल्लिपेण 'मलघारिन्' नामसे प्रसिद्ध थे। ये शक संवत् १०५० में फाल्गुन कृष्ण तृतीयाके दिन श्रवणवेलगुलमें समाधिस्थ हुए थे। प्रवचनसारटीका, पंचास्तिकायटीका, ज्वालिनीकल्प, पद्मावतीकल्प, वज्रपंजरविधान, ब्रह्मविद्या और आदिपुराण नामक ग्रन्थ भी मल्लिपेण आचार्यके नामसे प्रसिद्ध है। परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि ये ग्रन्थ कौनसे मल्लिषेणने रचे थे। २. नागेन्द्रगच्छगोविन्दवक्षोऽलंकारकौस्तुभाः। ते विश्ववन्द्या नन्द्यासुरुदयप्रभसूरयः ।। श्रीमल्षेिणसूरिभिरकारि तत्पदगगनदिनमणिभिः । वृत्तिरियं मनुरविमितशाकाब्दे दीपमहसि शनी ।। श्रीजिनप्रभसूरिणां साहाय्योद्भिन्नसौरभा । श्रुतावुत्तंसतु सतां वृत्तिः स्याद्वादमंजरी ॥ ३. मोतीलाल लाधाजीने आहतमतप्रभाकर पूनासे प्रकाशित स्याद्वादमंजरीकी प्रस्तावनामें नागेन्द्रगच्छके आचार्योकी परम्परा निम्न प्रकारसे दी है शीलगुणसूरि देवचन्द्रसूरि शीलरुद्रगणि पावलगणि महेन्द्रसूरि आनन्दसूरि शान्तिसूरि अमरचन्द्रसूरि _हरिभद्रसूरि विजयसेनसूरि उदयसेनसूरि उदयप्रभसूरि यशोदेवसूरि मल्लिषेणसूरि ४. उदयप्रभसूरिने धर्माभ्युदयमहाकाव्य, आरंभसिद्धि, उपदेशमालाकणिकावृत्ति आदि ग्रन्थोंकी रचनाकी है।
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy