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________________ १२९ अन्य.यो. व्य. श्लोक १४] स्याद्वादमञ्जरी नवि छेओ नवि दाहो ण पूरणं तेण भिन्नं तु । जम्हा य मोयगुच्चारणम्मि तत्थेव पच्चओ होइ ॥२॥ न य होइ स अन्नत्थे तेण अभिन्नं तदत्थाओ।"१ एतेन-"विकल्पयोनयः शब्दा विकल्पाः शब्दयोनयः कार्यकारणता तेषां नार्थ शब्दाः स्पृशन्त्यपि ॥" इति प्रत्युक्तम् । "अर्थाभिधानप्रत्ययास्तुल्यनामधेया" इति वचनात् । शब्दस्य ह्येतदेव तत्त्वं यदभिधेयं याथात्म्येनासौ प्रतिपादयति । स च तत् तथाप्रतिपादयन् वाच्यस्वरूपपरिणामपरिणत एव वर स्या, नान्यथा, अतिप्रसङ्गात् । घटाभिधानकाले पटाद्यभिधानस्यापि प्राप्तेरिति । अथवा भङ्ग्यन्तरेण सकलं काव्यमिदं व्याख्यायते । वाच्यं वस्तु घटादिकम् । एकात्मकमेव एकस्वरूपमपि सत् , अनेकम् अनेकस्वरूपम् । अयमर्थः। प्रमाता तावत् प्रमेयस्वरूपं लक्षणेन निश्चिनोति । तच्च सजातीयविजातीयव्यवच्छेदादात्मलाभ लभते । यथा घटस्य सजातीया मृन्मयपदार्थाः, विजातीयाश्च पटादयः। तेपां व्यवच्छेदस्तल्लक्षणम् । पृथुबुध्नोदराद्या जलते, और 'मोदक' से नहीं भर आते, अतएव वाचकसे वाच्य भिन्न है। तथा 'मोदक' शब्दसे मोदकका ही ज्ञान होता है, अग्निका नहीं, इसलिये वाचक ( शब्द ) और वाच्य ( अर्थ ) अभिन्न हैं।" इस कथनसे "विकल्पसे शब्द उत्पन्न होते हैं, और शब्दसे विकल्प उत्पन्न होते हैं, अतएव शब्द और विकल्प दोनोंमें कार्य-कारण संबंध है, परन्तु शब्द अपने अर्थसे भिन्न हैं ( अतएव दोनों एक दूसरेसे भिन्न हैं )।" यह कथन भी खंडित हो जाता है। क्योंकि "अर्थ, अभिधान और प्रत्यय ये पर्यायवाची शब्द है", ऐसा कहा गया है । जब शब्द वाच्यार्थका यथार्थरूपसे प्रतिपादन करता है, तव वाच्यार्थका यथार्थरूपसे प्रतिपादन करना ही शब्दका स्वरूप है। वाच्यार्थका यथार्थरूपसे प्रतिपादन करनेवाले शब्दका, वाच्यका स्वरूप जिसमें अन्तर्निहित है ऐसे अपने परिणामके स्वरूपसे परिणत होनेपर ही उच्चारण करना शक्य है (जैसे घटके यथार्थ स्वरूपका प्रतिपादन करनेवाला शब्द वाच्यभूत घटके स्वरूपका ज्ञान होनेके अनन्तर वाच्यके स्वरूपसे युक्त अपने घट स्वरूप शब्दके परिणामरूपसे परिणत होनेपर ही घट शब्दका उच्चारण शक्य है ), अन्यथा नहीं। क्योंकि घट शब्दके उच्चारण कालमें पट आदि शब्दोंका उच्चारण होनेसे अतिप्रसंग उपस्थित होता है । ___अथवा, दूसरी तरहसे श्लोकका अर्थ किया जा सकता है। वाच्य घट आदि एक रूप होकर भी अनेक रूप हैं। भाव यह है कि प्रमाता प्रमेयभूत पदार्थके स्वरूपका उसके लक्षण द्वारा उसका निश्चय करता है। सजातीय और विजातीय पदार्थोंका व्यवच्छेद करनेसे लक्षण अस्तिरूपको प्राप्त करता है। उदाहरणके लिए, मिट्टीसे बने पदार्थ घटके सजातीय और पट आदि पदार्थ विजातीय होते हैं। इन सजातीय और विजा १. छाया-अभिधानमभिधेयाद भवति भिन्नमभिन्नं च । क्षुराऽग्निमोदकोच्चारणे यस्मात् तु वदनश्रवणयोः । नाऽपि च्छेदो नापि दाहो न पूरणं तेन भिन्नं तु । यस्माच्च मोदकोच्चारेण तत्रैव प्रत्ययो भवति ॥ न च भवति अन्यार्थे तेनाभिन्नं तदर्थात् । २. बाह्यः पृथुबुघ्नोदराकारोऽर्थोऽपि घट इति व्यपदिश्यते । तद्वाचकमभिधानं घट इति । तद्ज्ञानरूपः प्रत्ययोऽपि घट इति । तथा च लोके वक्तारो भवन्ति। किमिदं पुरो दृश्यते घटः । किमसौ वक्ति घटं । किमस्य चेतसि स्फुरति घटः । १७
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
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