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________________ द्वितीय संस्करण वीर सेवामन्दिर से प्रकाशित 'न्यायदीपिका' का प्रथम संस्करण समाप्त हो गया था। और कई स्थानों से उसकी मांग आ रही थी। बम्बई परीक्षालय के पठनक्रम में होने से उसका अभाव विशेष खटक रहा था। इस कारण उसका पुनः प्रकाशन करना पड़ा। प्रथम संस्करण कितना लोकप्रिय हुआ और समाज में उसकी क्या कुछ मांग बढ़ी, इससे उसकी लोकप्रियता का सबूत मिल जाता है। सम्पादनसंशोधन उसका अनुवाद, प्रस्तावना, संस्कृत टिप्पण और शब्दकोष वगैरह के उपयोगी परिशिष्टों से वह केवल छात्रों के ही उपयोग की वस्तु नहीं रही किन्तुं विद्वानों के भी उपयोग में आने वाली कृति है । वीरसेवामन्दिर के विद्वान् पं० बालचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री और परमानन्द शास्त्री दोनों ने मिलकर प्रूफ आदि का संशोधन कर इस संस्करण को शुद्ध और सुन्दर बनाने का प्रयत्न किया है, इसके लिए दोनों ही विद्वान् धन्यवाद के पात्र हैं। आशा है पाठकगण इसे अपनाएँगे । प्रेमचन्द जैन सं० मंत्री, वीरसेवामन्दिर
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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