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________________ १८ किरातार्जुनीयम् अनुरक्त हैं । दुर्योधन बहुमूल्य पारितोषिक तभी पता चलता है जब वे होने के कारण प्रजा सुची हे, सन्तुष्ट है और दुर्योधन में अपने बलशाली योद्धाओं को कृतज्ञतावश समय-समय पर प्रदान करता है। इससे प्रसन्न होकर वे अग्ने प्राणों की बाजी लगाकर भी दुर्योधन के अभीष्ट कार्यों को सम्पादित करना चाहते हैं । दुर्योधन अपने राष्ट्र के वृत्तान्त को जानने के साथ-साथ अन्य राष्ट्रों के वृत्तान्त को भी भली-भाँति जानता है । अपने गुप्तचरों के माध्यम से वह दूसरे राजाओं के रहस्यों को तो पूर्ण रूप से जानता है, किन्तु उसके रहस्यों को कोई नही जानता । दूसरे लोगों को उसकी योजनाओं का कार्य रूप में परिणत हो जाती हैं । यद्यपि उसने किसी के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग नहीं किया और न उसने किसी के प्रति क्रोध किया, तथापि सभी राजा उसके गुणों से प्रभावित होकर उसके आदेश को शिरोधार्य करते हैं । नवीन यौवन के कारण गर्वयुक्त दुःशासन को युवराज पद पर स्थापित करके वह स्वयं यज्ञ करने में लगा है । भूमण्डल का शासन करता हुआ भी दुर्योधन तुमसे आने वाली विपत्तियों की चिन्ता करता ही रहता है । प्रसङ्गवश आप का नाम आने पर अर्जुन के पराक्रम को स्मरण जाता है। कपटपरायण उस दुर्योधन के प्रति समुचित मुझ जैसे गुप्तचरों की वाणी तो समाचार देने तक ही सीमित होती है इस प्रकार कहकर और पुरस्कार प्राप्त कर वनेचर अपने घर चला गया । युधिष्ठिर ने द्रौपदी के भवन में प्रवेश करके ये सब बातें द्रौपदी के समक्ष भाइयों से कही । करता हुआ वह दुःखी हो प्रतीकार शीघ्र कीजिए । द्वितीय भाग ( द्रौपदी को उक्ति ) - शत्रुओं की समृद्धि को सुनकर उनके द्वारा किए गए अरमानों को स्मरण करती हुई द्रौपदी युधिष्ठिर के क्रोध और उत्साह को बढ़ाने के लिए बोली - है राजन् ! आप जैसे बुद्धिमानों के प्रति स्त्रियों के द्वारा किया गया उपदेश तिरस्कार के समान होता है । तथापि मेरी तीव्र मनोव्यथायें मुझको कहने के लिये प्रेरित कर रही हैं । इन्द्र के समान महान् पराक्रमी अपने पूर्वजों के द्वारा बहुत काल तक धारण की गई पृथ्वी ( राज्य ) को आपने स्वयं उसी प्रकार छोड़ दिया, जिस प्रकार
SR No.009642
Book TitleKiratarjuniyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibhar Mahakavi, Virendra Varma
PublisherJamuna Pathak Varanasi
Publication Year1978
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size81 MB
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