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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी ____६२ ३१. शब्द सहना भी साधना है! इ श्रमण परमात्मा महावीर भगवन्त के समय की बात है। भगवान की प्रमुख साध्वी थी चन्दनबालाजी | चन्दनबालाजी के पास एक राजकुमारी ने दीक्षा ली थी, नाम था मृगावतीजी। एक दिन चन्दनबालाजी समग्र साध्वी-परिवार के साथ भगवान के समवसरण में उपदेश श्रवण करने गई थीं। सूर्यास्त के पहले-पहले उपदेश सुनकर वे अपने स्थान पर पहुँच गई, परन्तु मृगावतीजी समवसरण में ही बैठी रही... भगवन्त के मधुरतम उपदेश सुनने में वे इतनी तल्लीन हो गई थीं... कि उन्हें कुछ ख्याल ही नहीं रहा... कि 'सब साध्वीजी चली गयी हैं... मुझे अपने स्थान पर पहुँच जाना चाहिए...।' ___ जब मृगावतीजी अपने स्थान पर पहुँची, अंधेरा हो गया था। गुरुणी चन्दनबालाजी ने उन्हें मधुर शब्दों में उपालम्भ दिया : 'तुम्हारे जैसी कुलीन साध्वी को इतनी देर तक समवसरण में नहीं रहना चाहिए।' बस, ज्यादा कुछ नहीं कहा। मृगावतीजी ने नतमस्तक होकर उपालम्भ सुन लिया। सुनने के बाद उन्होंने ऐसा कुछ चिन्तन किया... ऐसा कुछ सोचा... कि उसी रात्रि में उनको 'केवलज्ञान' हो गया। वे वीतराग बन गई। ___ क्या सोचा होगा उन्होंने? कैसा चिन्तन किया होगा उन्होंने? गुरुणीजी का उपालम्भ सुनने पर ऐसा कौन-सा उच्चतम भाव उनके हृदय में... उनकी अंतरात्मा में प्रगट हुआ होगा... कि जिससे उनको केवलज्ञान की उपलब्धि हो गई? उपालम्भ के वचन नहीं, उपदेश के वचन सुनकर भी मुझे केवलज्ञान नहीं हो रहा है... उपालम्भ के वचनों से केवलज्ञान कैसे हुआ होगा? उपालम्भ सुनना अच्छा नहीं लगता है, अप्रिय शब्द से वैराग्य नहीं बढ़ता है, रोष बढ़ता है। कटु शब्दों से आत्मभाव निर्मल नहीं होता है, मलीन होता है... उपालम्भ से वीतरागता!! मृगावतीजी की कैसी होगी आन्तर साधना? गुरुणी का उपालम्भ सुनकर, गुरुणी के प्रति रोष नहीं किया... रिस नहीं की... अपने आपको निरपराधी सिद्ध करने के लिये तर्क-वितर्क नहीं किये... ऐसा कुछ सोचा... कि वीतराग बन गई वे पूजनीया साध्वी! काश... वह चिन्तन किसी ने ग्रन्थस्थ कर लिया होता तो!! For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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