SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org यही है जिंदगी २११ मित्र मेरे, निराश मत बनो । साहस को मरने मत दो। संजीवनी को पी लो। अपने आत्मगौरव को मत भूलो। एक बात मानोगे? तुम केवल अपने लिए ही मत जीओ... समग्र जगत के लिए जीना शुरू करो। जीवमात्र के लिए जीना प्रारम्भ करो। जब तक मनुष्य केवल अपने लिए ही जीता है, तब तक ही व्यथा और वेदनाएँ रहती हैं। तब तक ही वह दूसरों का सहारा खोजता है। तुझे तो स्वयं दूसरों का सहारा बनना है। - तुझे तो स्वयं दूसरों की दिव्य आशा बनना है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विश्वास रख, तू दूसरों का सहारा बन सकता है, दूसरों की आशा बन सकता है। - दुनिया में फूलों से प्यार करने वाले बहुत मिलते हैं... परन्तु स्वयं फूल बनकर दूसरों को सुगंध देने वाले बहुत कम मिलते हैं। गंगा की यात्रा करने वाले तो इस देश में करोड़ों लोग होते हैं, परन्तु स्वयं गंगा बनकर बहने वाले... कितने मिलेंगे ? - स्वयं पुष्प बन जाना है.... स्वयं गंगा बन जाना है... प्यारे मित्र, अज्ञान की आँधियों के बीच तुम्हें ज्ञान के दीप जलाने हैं। - दिव्य जीवन-रचना के कार्य में तुम्हें अपना सत्त्व निचोड़ना है। जन-जन में शांति, समता और प्रसन्नता के पुष्प प्रस्फुरित करने हैं । भूलना मत कि... - • हम बहुत कुछ खो चुके हैं प्रमाद में, अब नहीं खोना है। इस मनुष्य-जीवन में अब सोते-सोते समय नहीं गँवाना है... यह तो जागृति का ही जीवन है । एक महत्त्वपूर्ण कार्य करना है जीव-जीव में... मनुष्य - मनुष्य में मैत्रीभाव को बढ़ाना है । हर मनुष्य में जीवन के प्रति विश्वास पैदा करना है। परमात्मा की एक-एक कल्याणकारी आज्ञा का जन-जन में प्रसारण करना है । तो ही तुम सबके सहारे बनोगे ! For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy