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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra यही है जिंदगी www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७९. अनजान क्या आत्मीय नहीं हो सकते? उसने एक दिन एक अपरिचित व्यक्ति का अपमान कर दिया । अपमान करने की दूसरी कोई वजह नहीं थी... एक ही वजह थी ... वह व्यक्ति अपरिचित था! मेरा मन अस्वस्थ बन गया, मैंने नाराजगी से पूछा : ' क्यों रे.... उसके साथ अभद्र व्यवहार क्यों किया ?' 'वह अपरिचित था.... .' उसने प्रत्युत्तर दिया । 'क्या वह भविष्य में परिचित नहीं हो सकता है?' वह मौन रहा... मेरा भीतर मन बोलता रहा... अपरिचितता क्या अपमानपात्र है ? मुझे कोई अपरिचित मान कर मेरा अपमान करे तो ? मेरे साथ अभद्र व्यवहार करे तो ? - १६४ दुनिया में क्या परिचय की ही प्रतिष्ठा है ? परिचय का ही बोलबाला है? आज का अपरिचित... कल परिचित हो सकता है ! आज अपरिचित मान कर जिसका तिरस्कार किया हो, कल उसी के सामने नतमस्तक होना पड़ सकता है ! श्री राम, लक्ष्मण एवं सीता के साथ परिभ्रमण कर रहे थे... 'तापी' नदी के तट पर ‘अरुण' गांव में पधारे। सीताजी तृषातुर थे। गांव में प्रवेश करते ही एक जीर्ण गृह देखा । वह एक दरिद्र ब्राह्मण का घर था, ब्राह्मण का नाम था कपिल। उसकी पत्नी का नाम था सुशर्मा । सुशर्मा ने श्रीराम का स्वागत किया, सम्मान दिया । कपिल ने इससे पहले तीनों का तिरस्कार किया था, अनादर किया था । परन्तु वही कपिल जब यक्षनिर्मित रामपुरी में पहुंचा, राजसभा में प्रवेश किया तब श्री राम... लक्ष्मण और सीता को देखते ही कपिल ब्राह्मण घबराया ! For Private And Personal Use Only 'अरे... ये तो वे ही हैं... जिनका मैंने घोर अपमान किया था... मैं जिन पर आगबबूला हो गया था ! अरे भगवान... अब मेरा क्या होगा? मैं तो आया था दान लेने... मेरी दरिद्रता मिटाने... परन्तु...
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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