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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी १६३ __ परंतु ऐसा क्यों दिखाई देता है : दूसरों के दुःख दूर करने में मैं अपने आपको दुःखी महसूस करता हूँ | क्या इतना दुःख सहन करना इस मार्ग में आवश्यक होगा? अनिवार्य होगा? - निर्मल पानी देनेवाली नदियों में लोग मलमूत्र डालते हैं न? - मीठे-मधुर फल देनेवाले वृक्ष पर लोग पत्थर मारते हैं न? प्रहार करते हैं न? __- सुख देनेवालों को दुःख देना इस दुनिया का नियम है क्या? चाहे नियम न हो, परन्तु वैसा ही हो रहा है। ___- जड़-भावहीन वस्तुओं के साथ दुर्व्यवहार करने से उन वस्तुओं पर भावात्मक दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है, परन्तु चेतन-संवेदनशील व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार करने से, उस व्यक्ति पर भावात्मक दुष्प्रभाव पड़ता ही है। - हाँ, यदि व्यक्ति वीतराग बन जाए, राग-द्वेषरहित हो जाए, तो उस पर कोई भावात्मक दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। दुनिया कितना भी दुर्व्यवहार करे उनके साथ, वे कभी दुःखात्मक संवेदन नहीं करेंगे! - सभी प्रश्नों का समाधान वीतरागता में है! For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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