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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - क्षमाधर्म के अभ्यास से क्रोध पर विजय पा सकता है। - नम्रता-धर्म के अभ्यास से मान पर विजय पा सकता है। - सरलता-धर्म के अभ्यास से माया पर विजय पा सकता है, और - अनासक्ति-धर्म के अभ्यास से लोभ पर विजय पा सकता है। यह आंतरिक पुरुषार्थ तभी हो सकता है, जब जीव का आत्मवीर्य उल्लसित हो। आत्मवीर्य तभी उल्लसित हो सकता है, जब उस जीव का 'वीर्यांतराय' कर्म का क्षयोपशम हो। वीर्यांतराय कर्म का क्षयोपशम नहीं हो, तो निराश हो कर बैठे नहीं रहना है, क्षयोपशम करने का पुरुषार्थ करना है। श्रद्धा से, ज्ञान से और तप से पुरुषार्थ कर सकता है। मनुष्य जीवन में ही यह पुरुषार्थ संभवित है। अन्य गतियों में कषायों पर विजय नहीं पा सकती है आत्मा! नरक गति में मोहनीयकर्म - चारित्र मोहनीय कर्म बे-रोकटोक उदय में आता है, वहाँ जीव उस उदय को रोकने का पुरुषार्थ नहीं कर पाता है। - तिर्यंच गति में भी चारित्र मोहनीय के उदय को भोगना ही पड़ता है। - देवगति में देव भी कर्म के उदय के सामने लाचार होते हैं। - मनुष्य गति में मनुष्य यदि चाहे तो वह कषायों का नाश कर सकता है! इसीलिए तो चेतन, तू कई महात्माओं को क्षमाशील देखता है, कई महानुभावो को विनम्र और सरल प्रकृति के देखता है। कई पुण्यशाली मनुष्यों को निर्लोभी और अनासक्त योगी देखता है! ___जिन मनुष्यों को चेतना जागृत नहीं होती है वे कषायों के उदय को आधीन हो जाते हैं। छोटा-बड़ा निमित्त मिलते ही कषाय उदय में आ जाते हैं... और मनुष्य क्रोधी, मानी, मायावी... और लोभी बन जाता है। परंतु सभी जीवों के कषाय समान रूप से उदय में नहीं आते हैं। कषाय चार प्रकार के होते हैं - अनन्तानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन। अनन्तानुबंधी चार कषाय अति तीव्र होते हैं। ये कषाय मिथ्यात्वी जीवों को ही होते हैं। अलबत्ता, किसी को प्रगट रूप से होते हैं, किसी को प्रगट रूप में नहीं होते परंतु निमित्त पाकर वे प्रगट रूप में आ जाते हैं। सोया हुआ साँप कितना ८६ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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