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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - एक श्रीमंत व्यक्ति ने २० लाख रुपये खर्च कर भव्य बंगला बनवाया, बंगला तैयार हो गया था। उसमें रहने जाना था । मुहूर्त भी निकाला गया था, परंतु एक दिन चौकीदार ने आकर कहा : 'शेठ साब, कल रात में मैं नए बंगले में सोया था... मैंने बंगले में एक ऊँचे-ऊँचे मनुष्य को फिरता हुआ देखा... सफ़ेद वस्त्र पहने हुए थे... मैं, घबरा गया... पसीने से मेरा शरीर भर गया... मैं रज़ाई ओढ़ कर सो गया...।' सेठ ने निर्णय किया - 'उस नए बंगले में नहीं रहना है।' ऐसा क्यों हुआ? उपभोगांतराय कर्म के उदय से! भूत का दिखना तो निमित्त कारण था। -- एक परिचित भाई ने कहा : 'गुरुदेव, आपके अनेक प्रवचन सुनने पर भी मेरी पत्नी का अलंकारों का ममत्व दूर नहीं होता है। तीन बक्स भरे पड़े हैं अलंकारों से! नए-नए अलंकार बनवाती जाती है, परंतु पहनती नहीं है।' मैंने पूछा : ‘क्यों नहीं पहनती है?' उसने कहा : 'बंबई है न! भय लगता है! गुंडे लोगों का भय लगता है। इसलिए नहीं पहनती हैं। इच्छा होते हुए भी नहीं पहनती है!' अलंकारों का उपभोग कौन नहीं करने देता है? उपभोगांतराय कर्म | गुंडों का भय तो निमित्त कारण था। मूल कारण उपभोगांतराय कर्म का उदय था। ___ - एक श्रीमंत 'मर्सीडीझ' कार लाए। कार का उपयोग अभी दो - तीन दिन किया होगा, इनकमटैक्स कमिश्नर का फोन आया : ‘दो दिन के लिए आपकी कार भेजें ।' ड्रायवर भी साथ भेजें। कार भेजनी पड़ी। उसने सोचाः 'इस प्रकार तो कई ऑफिसर कार मँगवाएँगे.. कार बिगड़ जाएगी।' उसने कार को दूसरे गाँव भेज दिया, जहाँ उसका लड़का रहता था! कार गेरेज में बंद हो गई! कार का उपभोग वह श्रीमंत नहीं कर सका, चूंकि उपभोगांतराय कर्म का उदय था! ___ एक महत्वपूर्ण बात इस विषय में समझाता हूँ। उपभोगांतराय कर्म, सभी उपभोगों में एक साथ अड़चनें नहीं डालता है। कभी स्त्री-सुख के उपभोग में, कभी वस्त्र-सुख के उपभोग में, कभी वाहन-सुख के उपभोग में... तो कभी आभूषण-सुख के उपभोग में अंतराय-विघ्न डालता है...। कभी दो प्रकार के, कभी तीन प्रकार के तो कभी सभी प्रकार के उपभोगों में अंतराय करता है। ५५ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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