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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र: १२ प्रिय चेतन, धर्मलाभ! तेरा पत्र मिला, आनंद हुआ। तेरा प्रश्न है : 'मेरा एक मित्र है, गुणवान है। परंतु शादी के बाद, एक वर्ष भी बीता नहीं होगा, उसने अपनी पत्नी को मायके भेज दिया है और आज वह संबंधविच्छेद की बात करता है। उसकी पत्नी अच्छी है, गुणवान और रूपवान है...इसलिए मन में प्रश्न उठा कि ऐसा क्यों होता है?' चेतन, यह काम उपभोगांतराय कर्म का है। पुरुष के लिए स्त्री, घर, वस्त्र, और अलंकार आदि उपभोग्य है। जो वस्तु बार-बार भोगी जा सकती है, वह उपभोग्य कहलाती है। वैसे पुरुष को भी ‘संभोग सुख' नहीं मिलता है, तो उपभोगांतराय कर्म का ही कारण मानना चाहिए | चाहते हुए भी उपभोग का सुख नहीं मिलता है, उपभोग्य पात्र होने पर भी उपभोग का सुख नहीं मिलता है - इस उपभोगांतराय कर्म की वजह से। कुछ उदाहरणों से यह बात समझाता हूँ : - एक भाई ने अपनी पसंद के सुंदर वस्त्र सिलवाए। उसको वे वस्त्र पहनकर मित्र की शादी में जाना था। अगले ही दिन उसके शरीर में 'एलर्जी' हो गई। शरीर की चमड़ी लाल-लाल हो गई। वह डॉक्टर के पास गया । डॉक्टर ने कहा : एलर्जी अनेक प्रकार की होती है। तुम्हें यह एलर्जी 'सिंथेटिक' कपड़े की है। इसलिए टेरेलीन या टेरीकोट का कपड़ा नहीं पहनना। सूती वस्त्र ही पहनना। ___ वह भाई, वे मूल्यवान सुंदर वस्त्र नहीं पहन सका! इसका कारण, मूल कारण था उपभोगांतराय! निमित्त कारण बना एलर्जी का दर्द। ___- एक लड़की की शादी हुई। जिस लड़के के साथ शादी हुई थी वह लड़का सुशिक्षित था, गुणवान और देवकुमार जैसा सुंदर था। परंतु कुछ दिन बीते न बीते, लड़के को ‘ब्लड कैन्सर' हुआ। डॉक्टर की राय के अनुसार उसने 'स्त्री संभोग' का त्याग कर दिया | मन की इच्छा होते हुए भी ‘संभोग सुख' में अंतराय आ ही गया । मूल कारण था उपभोगांतराय कर्म, निमित्त कारण बना ब्लड कैंसर! ५४ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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