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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आनेवाला कर्मों के विषय में चिंतन करना। कर्मों की अदृश्य सत्ता कितना काम कर रही है। जैसे-जैसे गहराई में जाएगा.. तू रोमांचित होता जाएगा! चेतन, कर्मसिद्धांत के विषय में, आज के विषय के अनुकूल कुछ बातें लिखता हूँ। ध्यान से पढ़ना और स्मृति में भर लेना। - आत्मा के असंख्य प्रदेश होते हैं, - एक-एक आत्म प्रदेश के साथ अनंत कार्मण वर्गणा' लगी हुई हैं, - एक-एक कार्मण वर्गणा में अनंत-अनंत ‘स्कंध' होते हैं, - एक-एक स्कंध में अनंत-अनंत परमाणु होते हैं, - जब तक आत्मा के साथ संलग्न नहीं होते हैं तब तक वे स्कंध कार्मणवर्गणा ही कही जाती है। जिस समय आत्मा के साथ वह कार्मण वर्गणा लगती हैं, उसका नाम 'कर्म' हो जाता है। चेतन, जब इस पत्र में वर्गणा' के विषय में लिखा है, तो उस विषय में विशेष रूप से कुछ लिखता हूँ: - सर्वज्ञ की बुद्धि से भी जिसके दो भाग नहीं हो सकते वैसे पुद्गल को 'परमाणु' कहते हैं। वैसे अलग-अलग परमाणु विश्व में अनंत है। ऐसे अलगअलग परमाणुओं की एक वर्गणा समझें । ___ - दो-दो परमाणु इकट्ठे हों, वैसे भी अनंत परमाणु हैं, उसकी दूसरी वर्गणा समझें। ___ - तीन-तीन परमाणु इकट्ठे हों, वैसे अनंत परमाणु हैं, उसकी तीसरी वर्गणा समझें। __ इस प्रकार चार-चार परमाणु इकट्ठे होते हैं, पाँच-पाँच, छ:-छ:, सात-सात और यावत् संख्याता परमाणु के स्कंध, असंख्यात परमाणु के स्कंध एवं अनंतअनंत परमाणु के स्कंध होते हैं | अंतिम वर्गणा में अनंत स्कंध होते हैं। एक-एक स्कंध में अनंत परमाणु होते हैं। - एक-एक अलग परमाणु से लगाकर अनंत परमाणुवाले स्कंध की बनी हुई वर्गणा तक, सभी वर्गणायें भी अनंत होती हैं। १८४ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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