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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का संघटन होता है, वर्गणा बनती है, तब शरीर रचना के लिए वे वर्गणायें जीव ग्रहण करता है। किस जीव को कितनी पुद्गल-वर्गणा चाहिए, उस का निर्णय भी संघातन नामकर्म करता है। यह कर्म जीव का ही होता है पुद्गल-परमाणुओं का नहीं होता है। जीव के संघातन-कर्म के अनुसार, उन-उन पुद्गलों में परिवर्तन होता है और उस-उस जीव के लिए योग्य बनते हैं। यह ‘संघातन नामकर्म' पाँच प्रकार का होता है। पहला है औदारिक संघातनः औदारिक शरीर के लिए ग्राह्य वर्गणाओं के परमाणुओं का संघात-गुण प्रगट करनेवाला नामकर्म । दूसरा है वैक्रिय संघातनः वैक्रिय शरीर के लिए ग्राह्य वर्गणाओं का संघातगुण प्रगट करनेवाला नामकर्म । ____ पाँचवा है कार्मण संघातनः कार्मण शरीर के लिए ग्राह्य वर्गणाओं के परमाणुओं का संघात-गुण प्रगट करनेवाला नामकर्म । तात्पर्यार्थ यह है: उस शरीर के लिए ग्रहण की हुई पुद्गल वर्गणाओं में रहे हुए परमाणुओं का परस्पर पिंडीभाव यह ‘संघातन नामकर्म' करता है। - अलग-अलग शरीर की नई-पुरानी वर्गणाओं का मिश्रण करने का कार्य 'बंधन नामकर्म' करता है। - उन-उन परमाणु वर्गणाओं को शरीर रूप प्रदान करने का कार्य 'शरीर पर्याप्ति' नामकर्म करता है। - शरीर की हड्डियों को सबल-निर्बल करने का कार्य 'संघयण नामकर्म' करता है। - शरीर की आकृति-संस्थान तराशने का कार्य संस्थान नामकर्म' करता है। - शरीर में अंगोपांग उत्पन्न करने का कार्य 'अंगोपांग नामकर्म' करता है। - अंगोपांगों का स्थान निर्धारित करने का कार्य निर्माण नामकर्म' करता है। - पाँच इंद्रियों की रचना 'इंद्रिय-पर्याप्ति नामकर्म' करता है। - शरीर का रूप, गंध, रस और स्पर्श निश्चित करनेवाला 'वर्ण-गंध-रस स्पर्श-नामकर्म' है। चेतन, एक शरीर बनने में कितने प्रकार के कर्म काम करते हैं? शरीर विषयक चिंतन करें तो इतनी सारी बातों का चिंतन करना। शरीररचना में काम १८३ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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