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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उसके मन में खाने के विचार, खाद्य पदार्थों के विचार घूमते रहते हैं। अब मनुष्यगति का आयुष्य कौन बाँध सकता है, यह बात बताता हूँ। मणुस्साउ पयईइ तणुकसाओ दाणरूई मज्झिम गुणो अ।। जो मनुष्य प्रकृति से अल्प कषायी होता है यानी स्वाभाविक रूप से जिस के क्रोध-मान-माया-लोभ अल्प होते हैं, जिस मनुष्य की सहज दान-रुचि होती है, यानी सदैव दान देने में जो अभिरुचि रखता है और शक्ति-अनुसार जो दान देता है, जो क्षमाशील होता है, सदाचारी होता है, नम्रता, सरलता वगैरह गुण जिसमें होते हैं, ऐसा मनुष्य मनुष्यगति का आयुष्य कर्म बाँधता है। कैसा मनुष्य देवगति का आयुष्यकर्म बाँधता है, यह बताता हूँ। ___ अविरयमाई सुराऽऽऊं बाल तवो, अकाम निज्जरो जयइ।। चेतन, जो मनुष्य अविरत सम्यग्दृष्टि होता है, महाव्रतधारी साधु-साध्वी होते जो बाल तपस्वी होते हैं, यानी मिथ्यादृष्टि तपस्वी होते हैं, सम्यग्दृष्टि तपस्वी होते हैं, महाव्रतधारी तपस्वी होते हैं, जो मनुष्य "अकाम निर्जरा" करनेवाले होते हैं, यानी जो मनुष्य अनिच्छा से दुःख सहन करते हैं, जो जीव अज्ञानी हैं और तप करते हैं, जो ज्ञानी पुरुष 'सकाम निर्जरा' करते हैं, यानी स्वेच्छा से जो कष्ट सहन करते हैं, ऐसे मनुष्य देवगति का आयुष्यकर्म बाँधते हैं। चेतन, किस गति का आयुष्यकर्म बाँधना है, इससे स्पष्ट होता है। जिस गति का आयुष्य कर्म बाँधना हो, उसके अनुरूप पुरुषार्थ करना चाहिए। ____ मालूम नहीं पड़ता है कि अपना आयुष्य कर्म बँध गया है या नहीं बँधा है। यह भी नहीं जान सकते कि कब आयुष्य कर्म बंधेगा। इसलिए सदैव जागृत रहना है। ऐसा बताया जाता है कि प्रायः पर्व तिथि के दिनों में आयुष्य कर्म बंधता है। यह एक सर्वसामान्य नियम बताया है। इसलिए पर्व दिनों में विशेष प्रकार की धर्म आराधना करने का एवं पापों का त्याग करने के नियम बनाए गए हैं। "पव्वेसु पोसहवयं" पर्व दिनों में पौषध व्रत करने का ज्ञानी पुरुषों ने उपदेश दिया है। १५६ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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