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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - लोक (चौदह राज लोक) देखे, - अलोक (अनंत) देखे, - अनंत द्रव्य देखे... - अनंत भूतकाल देखे... - अनंत भविष्यकाल देखे.. - अनंत जीवों के अनंत भाव देखे... फिर भी उनको नहीं होता राग, नहीं होता द्वेष | चूँकि वे वीतराग होते हैं। मोहनीय कर्म नष्ट हो जाने से वे निर्विकार होते हैं। चेतन, आज, इस काल में हम न वीतराग बन सकते हैं, नहीं सर्वज्ञ बन सकते हैं। चूँकि मोहनीय कर्म का और ज्ञानवरण कर्म का हम संपूर्ण नाश नहीं कर सकते हैं। तू पूछेगाः ‘क्यों संपूर्ण नाश नहीं करते इन कर्मों का?' इसका कारण, न हमारे पास वैसी शरीर शक्ति है, वैसा मनोबल है। तन और मन, दोनों निर्बल हैं हमारे । कर्मनाश करने के लिए दोनों शक्तियाँ अपेक्षित होती हैं। हाँ, कर्म बाँधने की शक्ति हैं हमारी । कर्म बाँधते रहते हैं। चेतन, हमारे निर्बल तन-मन से हम उत्कृष्ट पाप कर्म नहीं बाँध सकते हैं। हाँ, उत्कृष्ट पाप कर्म बाँधने के लिए भी तन-मन की उत्कृष्ट शक्ति चाहिए। नहीं है हमारे पास वैसी शक्ति। फिर भी, जितनी भी हमारी शक्ति है तन-मन की, हम केवलज्ञान के निकट पहुँचने का प्रयत्न कर सकते हैं। 'मुझे केवलज्ञान के निकट ___ पहुँचना है' ऐसा संकल्प करना चाहिए । 'पूर्ण ज्ञान का पूर्णानंद मुझे पाना है, हृदय में ऐसी तमन्ना रहनी चाहिए। ऐसी तमन्ना के बिना, पूर्णज्ञानी-सर्वज्ञ बनने की दिशा में प्रगति नहीं हो सकती है। चेतन, अब तुझे केवलज्ञान का स्वरूप बताता हूँ। - केवलज्ञान परम विशुद्ध ज्ञान होता है, - आत्मा में वह प्रकट होने के बाद कभी चला जाता नहीं है, - इसको ‘क्षायिक ज्ञान' कहते हैं, १३१ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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