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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किया गया है। 'सेक्सी' वृत्तियों को 'वेद' कहा गया है। - पुरुषों की सेक्सी वृत्ति को पुरुषवेद, - स्त्री की सेक्सी वृत्ति को स्त्री वेद, और - नपुंसक की सेक्सी वृत्ति को नपुंसकवेद कहा गया है। जो पुरुष या स्त्री, वेदमुक्त बनता है, उसके मन में वासना पैदा ही नहीं होती, वह 'अवेदी' कहलाता है। कभी अल्प प्रमाण में वासना जागृत हो भी सकती है, परंतु जागृत साधक-आत्मा उस वासना पर संयम कर लेता है। चेतन, 'मैथुन संज्ञा' पर विजय पाना सरल तो नहीं है, फिर भी अशक्य-असंभव भी नहीं है। वैसे समग्र जीवसृष्टि में सब से ज्यादा ‘मैथुन संज्ञा’ मनुष्य को होती है और उस पर पूर्ण विजय भी मनुष्य ही पा सकता है। ____ मैथुन संज्ञा चित्त को चंचल बनाती है। चितवृत्तियाँ चंचल बन जाती हैं। इससे आत्मज्ञान नहीं बन पाता है। आत्मज्ञान पाने के लिए चित्त स्थिर होना अनिवार्य है। चित्तस्थैर्य के लिए मैथुन संज्ञा पर विजय पाना भी अनिवार्य है। 'अवधिज्ञान' आत्मज्ञान का ही एक प्रकार है। उस पर जो आवरक कर्म लगा है, उस कर्म का क्षय के लिए अथवा क्षयोपशम करने के लिए मैथुन संज्ञा (वेद) पर संयम करना ही पड़ेगा। चेतन, अवेदी बनने के साथ-साथ 'अकषायी' बनना भी अति आवश्यक है। अकषायी का अर्थ है अल्पकषायी। कषायों की तीव्रता नहीं रहनी चाहिए | अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानी एवं प्रत्याख्यानी कषाय नहीं रहने चाहिए | संज्वलन कषाय भी अति अल्प रहने चाहिए। - प्रतिकूल संयोगों में क्रोध नहीं आना चाहिए। - अपमान अथवा सन्मान के समय मान-कषाय नहीं उठना चाहिए, - किसी भी प्रलोभन से प्रेरित होकर 'माया' नहीं करनी चाहिए, - कैसी भी परिस्थिति हो, लोभ में फँसना नहीं चाहिए। क्रोध, मान, माया और लोभ पर मनुष्य का संपूर्ण संयम रहना चाहिए। तब वह अकषायी अल्प कषायी कहा जाएगा। चेतन, अवधिज्ञानावरण' कर्म का क्षयोपशम कर, अवधिज्ञान का प्रकटीकरण करना है, तो अवेदी एवं अकषायी बनने का सतत पुरुषार्थ करना पड़ेगा। मन १२४ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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