SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - श्रुतज्ञान मात्र श्रोत्रंद्रिय-सापेक्ष होता है, मतिज्ञान सभी इंद्रियों से होता है। - मतिज्ञान मूक होता है, श्रुतज्ञान वाचाल होता है! चेतन, मतिज्ञान और श्रुतज्ञान कहाँ-कहाँ समान हैं और किस-किस अपेक्षा से भिन्न हैं, यह बात प्रासंगिक समझ कर लिखी हैं। कुछ बातें तू नहीं समझ पाएगा, परंतु समझने की जिज्ञासा पैदा होगी तो तू अवश्य समझने का प्रयत्न करेगा। अब मैं, 'मतिज्ञानावरण' कर्म के प्रभावों को बताता हूँ | परंतु इसके पूर्व मैं तुझे बता देना चाहता हूँ कि जिस जीव का जितना यह कर्म तीव्र, मंद और मध्यम कोटी का होगा, उसी प्रकार उसके प्रभाव होंगे। एक मनुष्य का ‘मतिज्ञानावरण' मंद होगा तो उसके प्रभाव मंद होंगे। दूसरे मनुष्य का यह कर्म तीव्र होगा तो उसके प्रभाव प्रगाढ़ और प्रबल होंगे। यानी मनुष्यों की बौद्धिक भूमिका, इस मतिज्ञानावरण कर्म पर आधारित होती है। ___- किसी मनुष्य की बुद्धि बहुत अच्छी है, तीव्र है, तो समझना कि उस मनुष्य का मतिज्ञानावरण कर्म मंद है, ___ - किसी मनुष्य की बुद्धि सामान्य है, मध्यम कक्षा की है, तो समझना कि उस मनुष्य का मतिज्ञानावरण कर्म प्रगाढ़ भी नहीं है, मंद भी नहीं है, मध्यम कोटि का __- किसी मनुष्य में बुद्धि जैसा तत्त्व ही नहीं दिखे, संपूर्णतया मूर्ख है, तो समझना कि उसका मतिज्ञानावरण कर्म प्रबल है, प्रगाढ़ है। दूसरी बात- जीवन में सदाकाल यह कर्म एक-समान नहीं भी रहता है। बचपन में मूर्ख लड़का यौवन में बुद्धिमान बनता है न? क्यों? बचपन में ___ उस बच्चे का मतिज्ञानावरण कर्म प्रगाढ़ होता है तो मूर्खता होती है, यौवन में यह कर्म प्रगाढ़ नहीं रहता है तो बुद्धिमत्ता होती है। यह कर्म बादल जैसा है! कभी घनघोर होता है बादल... कभी सामान्य होता है बादल! वैसे, कभी सुबह में बुद्धि काम नहीं करती है, दोपहर में अथवा शाम को, या दूसरे दिन बुद्धि काम करती है! मतिज्ञानावरण कर्म पतला पड़ जाता है तब बुद्धि के चमत्कार देखने को मिलते हैं। जिस मनुष्य का मतिज्ञानावरण कर्म पतला-मंद-मंदतर होता है वह मनुष्य, पहले नहीं देखे हुए, नहीं सुने हुए और नहीं सोचे हुए अर्थ को विशुद्ध रूप से ग्रहण करता है अपनी तीव्र बुद्धि से। किन्तु जिस मनुष्य का यह कर्म प्रबल प्रगाढ़ होता है वह इस प्रकार अर्थ १०६ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy