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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कहने का तात्पर्य यह है कि मिथ्यात्व से प्रभावित तीव्र बुद्धि जीव को संसार सागर में डुबा देती है, जब कि सम्यक्त्व से प्रभावित मंद बुद्धि भी जीव को संसार सागर से पार लगा सकती है। 'मतिज्ञानावरण' के साथ-साथ 'श्रुतज्ञानावरण' को समझाऊँगा। चूंकि मतिज्ञान और श्रुतज्ञान साथ-साथ रहते हैं। कहा गया है आगम ग्रंथों में - 'जत्थ मइनाणं तत्थ सुयनाणं, जत्थ सुयनाणं तत्थ मइनाणं।' परस्पर सापेक्ष हैं मतिज्ञान और श्रुतज्ञान | जैसे ये दो ज्ञान सापेक्ष हैं वैसे उसके आवरक कर्म भी परस्पर सापेक्ष हैं। जितना मतिज्ञानावरण प्रबल होगा उतना श्रुतज्ञानावरण प्रबल होगा। जितना श्रुतज्ञानावरण मंद होगा, उतना मतिज्ञानावरण मंद होगा। मतिज्ञान और श्रुतज्ञान की पाँच बातें समान होती हैं: स्वामी, काल, कारण, विषय और परोक्षता। जो मतिज्ञान का स्वामी होता है, वही श्रुतज्ञान का भी स्वामी होता है। जो मतिज्ञान का स्थितिकाल होता है, उतना ही श्रुतज्ञान का होता है। मतिज्ञान और श्रुतज्ञान दोनो इंद्रिय निमित्तक होता है। जैसे मतिज्ञान सर्व द्रव्यविषयक होता है वैसे श्रुतज्ञान भी होता है। जैसे मतिज्ञान परोक्ष होता है वैसे श्रुतज्ञान भी परोक्षज्ञान होता है। फिर भी प्राथमिकता मतिज्ञान की होती है, श्रुतज्ञान दूसरे नंबर में आता है। मति के बिना श्रुतज्ञान संभव नहीं है। श्रुतज्ञान के बिना मतिज्ञान हो सकता है! इसी दृष्टि से पहला मतिज्ञान कहा गया, दूसरा श्रुतज्ञान | स्वामी वगैरह पाँच बातें समान होने पर भी, दोनों ज्ञान के लक्षण भिन्न हैं। चेतन, दो ज्ञान में कैसी भिन्नता है, यह भी बताता हूँ- दोनों के लक्षण भिन्न हैं- जिससे योग्य विषय का मनन होता है, वह मतिज्ञान कहलाता है, और श्रवण को श्रुतज्ञान कहा जाता है। - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान का कारण है, श्रुतज्ञान कार्य है। - मतिज्ञान के २८ भेद हैं, श्रुतज्ञान के १४ भेद हैं। - मतिज्ञान साक्षर और निरक्षर दो प्रकार का होता है, श्रुतज्ञान मात्र साक्षर ही होता है। १०५ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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